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प्रमेय वन्द्रिकाटीका श०१३०६ सू०४ लोकालोकादिपूर्वपधारवे रोहानगारप्र० ४३ णामं अणगारे' रोहनामकोऽनगारः, स कीदृशः ? इत्याह- पगहभदए' प्रकृति भद्रकः, प्रकृत्या स्वभावेनैव भद्रका अनुकूलवृत्तिः ‘पगहमउए' प्रकृतिमृदुकः, प्रकृत्या स्वभावत एव मृदुकः कोमलः, 'पगइविणीए' प्रकृतिविनीतः, यतो भावमार्दविकोऽतएव स्वभावतो विनयशीलः, 'पगइउवसंते' प्रकृत्युपशांतः स्वभावत एवं प्रशान्ताकारः 'पगइपयणु कोहमाणमायालोमे' प्रकृतिपतनुक्रोधमानमायालोभ:-प्रकृत्यैव स्वभावत एव प्रतनवः प्रतलाः क्रोधमानमायालोमा यस्य स तथा, सत्यपि कषायोदये क्रोधादिकपायरहित इत्यर्थः। 'मिउमदवसंपन्ने' मृदुमादेवसंपन्नः, अत्यन्तकोमलः, 'अल्लीणे ' आलीनः गुरुवचनाश्रितः, यद्वागुप्तेन्द्रियः, 'भद्दए' भद्रकः गुरुशिक्षयाऽनुतापकः 'विणीए' विनीतः गुरुसेवावासी-शिष्य (रोहे णाम अणगारे) रोहनाम के अनगार थे। (पगइभद्दे) ये प्रकृति से भद्र थे-अर्थात् स्वभावसे ही अनुकूल वृत्तिवाले थे (पगहमउए) स्वभाव से ही कोमल थे (पगइविणीए ) प्रकृति से ही विनीत थे (पगइ उवसंते) स्वभाव से ही प्रशान्ताकार वाले थे (पगइपयणुकोहमाणमायालोभे) क्रोध, मान, माया, और लोभ ये चारों ही कषायें इनमें स्वभा. वतः ही कम थी। तात्पर्य यह है कि इनके यद्यपि कषाय का उदय था क्यों कि १० वें गुणस्थान तक कषाय रहती है फिर इनमें कषाय का उदय स्वभावसे ही अत्यन्त मन्द था। (मिउमद्दवसंपन्ने) ये अत्यन्त कोमल परिणामवाले थे। (अल्लीणे) गुरु के वचनों के आश्रित थे। अथवा-गुप्तेन्द्रिय थे (भदए) भद्रक-गुरु की शिक्षा से किसी भी जीव को संताप नहीं पहुंचाने वाले थे । (विणीए) विनीत-गुरु की सेवा करने वाले थे।
श्रम लगवान महावीरना "अंतेवासी" मतेवासी शिष्य "रोहे णामं अणगारे" शड नामना २ २ ता. “पगइभद्दे" मा भद्र प्रतिवास इता भेटले स्वमाथी स२८ वृत्तिवा उता. “पगइमउए" २१माथी ४ मण उता "पगइविणीए" स्वमाथी विनीत डा. "पगइउवसंते" स्वमाथी ।
शान्त वृत्ति वाण ता. "पगइपयणुकोहमाणमायालेभे” तभनामा श्रोध, માન, માયા અને લેભ, એ ચારે કષાયો સ્વભાવથી જ ઓછા હતા. તાત્પર્ય એ છે કે તેમનામાં જે કે કષાયને ઉદય હતું, કારણ કે દસમાં ગુણસ્થાન સુધી કષાયને સદ્ભાવ રહે છે. પણ તેમનામાં કષાયને ઉદય સ્વભાવથી જ सत्यात भई डतो “मिउमद्दवसंपन्ने" तेथे। अत्यत आम परिणाम उता. “अल्लीणे" गुरुना वयनाने! माश्रय सेना२१ त. या गुप्तेन्द्रिय ता. "भदए” मद्रि-भाय॥ ४५८थी २हित उता. “वीणीए" विनीत-गुरुनी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨