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________________ ५५२ भगवतीसूत्रे कात्यायनगोत्रः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य व्यावृत्तभोजिनः शरीरकम् उदारं यावदतीवातीवोपशोभमानं पश्यति दृष्ट्वा हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः प्रीतमनाः परमसौमनस्थितः हर्षवशविसर्पद् हृदयो यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैवोपागच्छति उपागत्य श्रमगं भगवन्तं महावीरं त्रिः-कृत्व आदक्षिग प्रदक्षिणं करोति यावत्पर्युपास्ते । स्कन्दक ! इति श्रमणो भगवान् महावीरः स्कन्दकं कात्यायन गोत्रमेवमवादीत् ॥ मू-११ ॥ लक्षणों से, व्यञ्जनों से एवं गुणों से युक्त था । उस समय उनका वह शरीर अपनी शोभा से बहुत अधिकशोभित हो रहा था । (तएण से खंदए कच्चाणस्स गोते समणस्स वियभोइस्स सरीरयं ओरालं जाव अईव अईव उवसोभेमाणं पासइ) कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक ने व्यावतभोजी श्रमण भगवान महावीर के उस उदार आदि विशेषणों से युक्त शरीर को ज्यों ही देखा । तो “ पासित्ता” देखकर हट्टतुट्ठचित्तमाणदिए वह बहुत हर्षित हुआ, बहुत संतुष्ट हुआ और अत्यंत आनंदयुक्त मनवाला हुआ !( पीइमणे परमसोमणस्सिये, हरिस वसविसप्पमाणहियए जेणेच समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ) तथा उसके मन में बहुत गहरा उनके प्रति प्रेम जग उठा । उसका मन अत्यंत सुन्दर बन गया। हर्ष के वश से उसका हृदय उछलने लगा। इस तरह की स्थिति वाला बना हुआ वह जहां श्रमण भगवंत महावीर विराजमान थे वहां पहुँचा । ( उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण વ્યંજનાવી અને ગુણોથી યુક્ત હતું. ભગવાનનું શરીર કુદરતી સૌંદર્યથી અતિशय शोभायमान सातु तुं (तरणं से खदए कच्चायणस्स गोते समणस्म भगवओ महावीरस्स वियहभोइस्स सरीरयं ओरालं जाव अईव अईव उयसोभेमाणं. पासइ) त्यार माह त्यायन गोत्रना ते ४४ व्यावृत्त मा श्रम मापान महावीरनु हा२ यावत मती शोभायमान शरीर लयु. ( पासित्ता) ते शरी२ २ (हतुद चित्तमाणंदिए ) तेना मनमा ध प थयो, तेने संतोष थयो भने तेन माननी पार न २wो (पीइमणे, परमसोभणास्सिये) हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवंमहावीरे तेणेव उवागच्छइ ) तेना મનમાં તેમના પ્રત્યે ઘણો જ ઉત્કટ પ્રેમ જાગ્યું. તેનું મન ઘણું જ સુંદર બની ગયું. આનંદથી તેનું હૃદય નાચી ઉઠયું. આ રીતે અત્યંત હર્ષ સાથે ते सासन महावीर या वि२२०४ मान ता त्या पक्षांच्या. (उवागच्छित्ता. समणं भगवं महाबीर तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ) त्यांनतम શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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