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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० ११ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५५३ टीका- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वियट्टभोई यावि होत्या' तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरो व्यावृत्तभोजी चाप्यभवत् — वियदृभोई ' व्यावृत्तभोजी-व्यावृत्तम्-अनेषणीयानिवृत्तम् एषणीयम् आहारं भुङ्क्ते यः स व्यावृत्तभोजी-विशुद्धाहारकारक इत्यर्थः । 'तएणं समणस्स भगवओ महाकीरस्य वियट्टभोइस्स ' ततः खलु श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य व्यावृत्तभोजिनः विशुद्धाहारिणः 'सरीरयं ओरलं' शरीरकमुदारम् , उदारं प्रधानमित्यर्थः । सिंगारं' शङ्गारम् शृङ्गारोऽलंकारादिकृता शोभा तत् सम्बपयाहिण करेइ ) वहां जाकर उसने श्रमण भगवान महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दन नमस्कार किया (जावपज्जुवासइ )यावत् पर्युपासना की । (खंदयाइ समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चायणस्स गोतं एवं वयासी) हे स्कन्दक ! ऐसा कहकर श्रमण भगवान महावीर ने कात्यायन गोत्रीय उन स्कन्दक से ऐसा कहा ॥ टीकार्थ--'तेणं कालेणं इत्यादि । 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उस कालमें और उस समय में (समणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान महावीर 'वियदृभोई यावि होत्था' व्यावृत्त भोजी थे। व्यावृत्तं भुङ्क्तेइति व्यावृत भोजी' इस व्युत्पत्ति के अनुसार अनेषणीय से निवृत्त जो भोजन है अर्थात् एषणीय निर्दोष जो आहार है वह व्यावृत्त भोजन है। इस व्यावृत्त भोजनको करने वाला व्यावृत्त भोजी है अर्थात् विशुद्ध आहार लेने वाला व्यावृत्त भोजी है। (नएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियदृभोइस्स) विशुद्धाहार करने वाले उन श्रमण भगवान महावीर का " सरीरयं" मापान मडापारने पा२ प्रहसि पू न नभ२४।२ ४ो, (जावपज्जुवासइ) मने यावतू पयुपासना 3री. ( खंदयाइ समणे भगवं महावीरे खंदयंकच्चायणस्सगोत्तं एवं वयासी) २४६४ ! मे समाधन ४रीन श्रम लग. વાન મહાવીરે કાત્યાનગોત્રી તે સ્કન્દકને આ પ્રમાણે કહ્યું t-" तेणं कालेणं तेणं समएणं" ते आणे भने ते समये “ समणे भगवं महावीरे " श्रम मावान महावी२ “वियभोईयावि होस्था" व्या. त्ता ता. व्यवृत्तमालनी व्युत्पत्ति २॥ प्रमाणे थाय छ “ व्यावृत्तं. भुङ्क्ते इति व्यावृत्तभोजी " मेषीय (मेष समिति युत) माहारने વ્યાવૃત્ત આહાર કહેવાય છે. તે વ્યાવૃત્ત યાને નિર્દોષ આહારનું ગ્રહણ કરનારને વ્યાવૃત્તભેજી કહે છે એટલે કે પ્રાસુક ( વિશુદ્ધ) આહાર सेना२ने व्यावृत्तमा छ. “तएणं भगवओ महाबीरस्स विय. भोइस्स" विशुद्ध माडार ४२नार ते श्रम लगवान महावीरनुं " सरीरयं " भ७० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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