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भगवतीसूत्रे केवल ज्ञानवान् अतएव 'तीय पच्चुप्पन्नमणागयवियाणए ' अतीत प्रत्युत्पन्नानागतविज्ञायकः अतीता नागतवर्तमानपदार्थविपयज्ञातेत्यर्थः, देशतः त्रिकाल ज्ञानवानपि एतादृशः संभवेत्तत्राह — सवण्णू ' सर्वज्ञः कालिकसर्वपदार्थविषयक ज्ञानवत्वात 'सम्बदरिसी' सर्वदर्शी सकलपदार्थानां करतलगतमुक्ताफलवत्साक्षा दर्शकत्वात् । 'जे णं मम एस अटे तव ताव रहस्सकडे हव्वं अक्खाए 'येन मा " तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए ,, भूत, वर्तमान और भविष्यत् कालकी सब बातों को जानते हैं । एकदेश की अपेक्षा से त्रिकाल ज्ञनवाला भी ऐसा हो सकता है अतः वे ऐसे नहीं हैं किन्तु " सव्वण्णू" सर्वज्ञ हैं-त्रैकालिक सर्व पदार्थों को जाननेवाले ज्ञान से युक्त हैं । तथा " सव्वदरिसी ,, सकलपदार्थों के करतलगत मुक्ताफल की तरह साक्षात् दर्शक होने से वे सर्वदर्शी हैं । “जेणं मम एस अट्टे तव रहस्सकडे हन्छां अक्खाए ,, ऐसे भगवान ने मुझ से आपका यह रहस्यकृत्त अर्थ स्पष्ट शीध्र कहा है, अर्थात् जिस समय पिंगलक निर्ग्रन्थने तुमसे प्रश्न किये और तुमने अपने मन में जो ऐसा विचार किया वह सब उसी समय उनके ज्ञान में दर्पण में प्रतिबिम्ब की तरह स्पष्ट झलक गया है यह बात (हव्व ) यह पद बतलाता है । अतः इसीसे हे स्कन्दक मैं इसे जान सकाहूं । तात्पर्य यह कि हे स्कन्दक । मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक अहंन् जिन केवली भगवान महावीर हैं वे समुत्पन्न केवल ज्ञान आदि से यवियाणए " भूत, वर्तमान मते भविष्यनी ची पातो only छ. (atળજ્ઞાની પણ એક દૃષ્ટિએ તે એવા જ હોય છે પણ અહી ત્રિકાળજ્ઞાનની वात नथी से मत माटे "सवण्णू” तथा “सब्वदरिसी" विशेषणाना प्रयो। ४ “ सव्वण्णू" तसे। सज्ञ छ त्रि समधी तमाम ३५ी भने सभी पातु यथार्थ ज्ञान धरावे छ. तथा “सव्वदरिसी” सी छे डायमा રહેલાં મુક્તા ફળની જેમ તમામ પદાર્થોને જોઈ શકતા હોવાથી તેઓ સર્વદશી છે. "जेणं मम एस अटठे तवताव रहस्सकडे हब्बं अक्खाए” सेवा ते मावाने આપના તે રહસ્યકૃત (ગુપ્ત) વિચારે મારી પાસે તુરત જ પ્રકટ કર્યા છે એટલે કે પિંગલક નિર્ગથે તમને જ્યારે પ્રશ્નો કર્યા, અને તમે તમારા મનમાં જે વિચાર કર્યો છે ત્યારે જ દર્પણમાં જેમ પ્રતિબિંબ દેખાય તેમ તેમના ज्ञानभा २५ष्ट रीते माया मे०४ पात “ हव्वं" ५४ मतावे छे. ७२४४४ ! તેમની પાસેથી હું તે જાણી શકો છું તાત્પર્ય એ છે કે હે સ્કન્દક ! મારા ધર્માચાર્ય, ધર્મોપદેશક, અહંત, જિન, કેવલી ભગવાન મહાવીર છે. તેઓ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨