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________________ -- ५४६ ___भगवतीसूत्र अर्थः समर्थः किं यन्मया कथ्यते स अर्थः समर्थः युक्तः किम् ? एवं गौतम कथनानन्तरं स्कन्दकः कथयति-'हंता अत्थि' ति 'हंता अस्थि ' हंत अस्ति इंतेति स्वीकारे, यत्वया कथितं तत्सर्व सत्यमिति भावः । 'तएणं से खंदए कच्चायणस्स गोत्ते भगवं गोयम एवं वयासी'-ततः खलु स स्कन्दकः कात्यायनगात्रो भगवन्तं गौतममेवमवादीत् कथितवान्-‘से के से गं गोयमा ' हे गौतम ! स क एषः 'तहारूवे गाणी वा तवस्सी वा ' तथारूपो ज्ञानी वा तपस्वी वा अस्ति 'जे णं तव एस अढे मम ताव रहस्सकडे हव्वं अक्खाए' येन तुभ्यमेषोऽर्थो मम तावत् रहस्य कृतः शीघ्रमाख्यातः, रहस्ये एकान्ते कृत इति रहस्य कृतः प्रच्छन्न संपादितो हृदये एवावधारितत्वात् , 'जओ णं तुमं जानासि' यतः खलु त्वं कहो स्कन्दक ! जो मैं कह रहा हूं वह युक्त है न ? इस प्रकार गौतम के कहने पह स्कन्दक ने उनसे कहा-"हंता अस्थि " हां युक्त है। अर्थात् जैसा आप कह रहे हैं वह सर्वथा सत्य है-हां ऐसी ही बात है। "हंता,, यह शब्द स्वीकार अर्थ में आया है। अतः जो तुम कहते हो यह सब सत्य है। गौतम द्वारा इस प्रकारकी परोक्षार्थ की बात सुनकर स्कन्दक के हृदय में बडा आश्चर्य हुआ और वह तुरत बोले कि (से के से णं गोयमा तहारूवे णाणी वा ) हे गौतम] वह कौन ऐसा तथारूप ज्ञानी ) (वा) अथवा ( तवस्सी) तपस्वी है (जेणं तव एस अट्ठे मम ताव रहस्सकडे हव्वं अक्खाए) जिसने तुमसे इस मेरे गुप्त अर्थको शीघ्र कह दीया है । (रहस्य कृतःरहस्ये कृतः) इति रहस्य कृतःगुप्त प्रच्छन्न संपादित कयों कि अभीतक यह अर्थ हृदय में धारित होता है। वाहर प्रकाशित नहीं किया गया है । (जओ णं तुमं जणासि ) कि जिससे साथी छ ? नही ? त्यारे २४-४ तेभने ४युं, “हता अन्थि" र गौतम ! तमाश पात तदन साथी छ. “हता " ५४ मा स्वी२॥ ममा १५२छे. तेथी એ વાત નકકી થાય છે કે ગૌતમની વાત સાચી છે તેમ સ્કન્દક સ્વીકારે છે આ રીતે ગૌતમ વડે પિતાની હૃદયગત વાત સાંભળીને સ્કન્દકના આશ્ચર્યને पार न रह्यो. तसा मासी ४या “से के से णं गोयमा ! तहारूवे णाणी वातबस्सी" गौतम ! मे। ज्ञानी म241 त५२वी छ , “जे णं तव एस अटठे मम ताव रहस्सकडे हव्व अक्खाए" भणे तमारी पांसे भा२। म। गुस अथ (प्रश्नी) २ माटी मधी १५थी ५४८ छ ? रहस्ये कृतः इति रहस्य कृतः (ગમ એટલે કે છુપા) સ્કન્દકે પોતાના વિચારે કોઈની પાસે પ્રકટ કર્યા ન હતા. હજી તે વિચારે ને તેમણે મનમાં જ રાખેલાં હતાં, સ્કન્દકના પ્રશ્નાને ભાવાર્થ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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