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भगवतीसूत्रे नंतो लोकः, तदेव यत्रैवेह तत्रैव हव्यमागतः तन्नूनं स्कन्दक ! अयमर्थः समर्थः ? हन्त अस्ति । ततः खलु स स्कन्दकः कात्यायनगोत्रो भगवन्तं गौतममेवमवादीत तद् एषः कः खलु गौतम ! तथा रूपो ज्ञानी वा तपस्वी वा येन खलु तव एषोऽर्थों मम तावद् रहस्यकृतः हव्यमाख्यातः यतः खलु त्वं जानासि ?। ततः स भगवान् गौतमः स्कन्दकं कात्यायनगोत्रमेवमवादी-एवं खलु स्कन्दक ! मम का है ? (तंचेव जेणेव इहं तेणव हव्यमागए ) इत्यादि प्रश्न पूछे गये, उनके उत्तर न जानने के कारण तुम शंकित आदि अवस्थावाले बनकर यहां जल्दी से जल्दी आये हो। (से गूणं खंदया! अढे समझे ) कहो खंदक! यह बात सत्य है न ? (हंता अत्थि) हां गौतम ! यह बात सत्य है। (तएणं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते भगवं गोयम एवं वयासी) इस के बाद कात्यायन गोत्र वाले उस स्कन्दक परिव्राजक ने गौतम से ऐसा कहा-(से के सेणं गोयमा!) हे गौतम! वह ऐसा कौन (तहारूवे) तथारूप (णाणी) ज्ञानी अथवा ( तवस्सी) तपस्वी पुरुष है (जे णं तव एस अढे मम ताव रहस्सकडे हवं अक्रवा. ए) जिसने मेरे इस रहस्यकृत-गुप्त-अर्थ को तुमसे बिलकुल स्पष्टरूप से उसी समय जानकर कहदिया है । (जओ णं तुम जाणासि ) जिससे तुम इस बात को जान सके हो । (तएणं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणस्स गोतं एवं क्यासी) इस प्रकार से स्कन्दक के कहने के बाद भग. वान् गौतम ने कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक से ऐसा कहा-( एवं खलु तेणेव हव्वमागए ) त्याहि प्रश्नो तभने पूछ। उता, ते ४ नही જાણવાને કારણે તમે શું તિ વગેરે મનભાવથી યુક્ત બનીને અહીં બને તેટલી अतावणथी माव्या छ।, (से गुणं खदया ! अठे समठे ?) २७४४ ! ४ ते पात साथी छने ? (हता अत्थि) , गौतम ! से वात ५२५२ साथी छ (तएणं से खंदए कच्चायणस्सगोते भगवं गोयम एवं वयासी) त्या२ मा जात्यायन गोत्रा ते ५४६ मावान गौतमने मा प्रमाणे पूछ्यु ( से के से गं गोयमा! तहारूबे णाणी तवस्सी ) गौतम ! माटो । ज्ञानी अथवा तपस्वी पुरुष र छ है (जे णं तव एस अटूठे मम ताव रहस्सकडे हवं अक्खाए) गरी भा२। गुल मथन (विचाराने) सत्यारे ने सत्यारे atta तभारी समक्ष भेटली मधी २५ष्टता पूर्व ५४८ ४ये। छे (जओ णं तुमजाणासि ) थी तभे ते पातने मारा मनोगत विद्यारने २४या छ ? (तएणं से भगवं गोयमे खंदए कचायणस्स गोत्तं एवं वयासी) त्यारे भगवान गौतमे अत्यायन गोत्री ते २४४४२ मा प्रमाणे ह्यु ( एवं खलु खंदया ! ) 3
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨