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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० ८ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५२१ यौव कृतंगला नगरी यौव छत्रपलाशकं चैत्यम् यौव श्रमणो भगवान महावीरस्तत्रैव प्राधारयत् गमनाय ॥ मू० ८॥ टीका-'तएणं सावत्थीए नयरीए' ततः खलु श्रावस्त्यां नगर्यो 'सिंघाडगजाव पहेसु' शृङ्गाटक यावत् पथेसु, इह यावत्पदेन-त्रिचतुष्क चत्वरमहापथानां संग्रहः करणीयः । तथा च-त्रिकोणमार्गे, मार्गत्रयसंमिलनस्थाने, चतुर्मार्गसमिकर (धाउरत्त परिहिए ) तथा गैरिक धातुसे रंगे हुए वस्त्रोको पहिनकर वह स्कन्दक (सावत्थीए नयरीए ) श्रावस्ती नगरी के (मज्झं मज्झेणं) ठीक बीच के मार्ग से ( निगच्छइ ) निकला (निगच्छित्ता) निकल कर (जेणेव कयंगला नयरी ) जहाँ कृतंगला नगरी थी ( जेणेव छत्तपलासए चेहए ) और जहां वह छत्र पलाशक नाम का चैत्य था ( जेणेव समणे भगवं महावीरे ) तथा उसमें जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे (तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) उस तरफ जानेको रवाना हुआ। टीकार्थ-(तएणं सावत्थीए नयरीए ) जय स्कन्दक परिव्राजक से वैशालिक श्रावक निर्ग्रन्थ पिंगलक ने पांच प्रश्न पूछे और कई बार दुहराने पर भी जब स्कन्दक को उनके उत्तर देने में सर्वथा मौनावलम्बन करना पड़ा-उस समय स्वयं स्कन्दक की आत्मा में इन प्रश्नों का यथार्थ उत्तर पाने के लिये जिज्ञासु भाव हुआ। ठीक इसी समय उस श्रावस्ती नगरी में श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। लोगोंके मुख से स्कन्दक ने प्रभु का आगमन सुनकर अपने अहोभाग्य की सराहना की २मा परीने (धाउर परिहिए ) अँ२ि४ धातुथी २i Rो पडशन ते २४४४ ( सावत्थीए नयरीए मज्झमज्झेण निगच्छइ ) श्रावस्ती नगरीन मध्यना भागे थी नीज्यI. (निगच्छित्ता) त्यांथी नीजाने (जेणेव कयगला नयरी, जेणेव छत्तपलासप चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेरेव पहारेत्थ गमणाए ) यां કૃદંગલા નગરી હતી અને જ્યાં છત્રપલાશક નામનું ચિત્ય હતું તે ત્યમાં (ઉદ્યાનમાં) શ્રમણ ભગવાન મહાવીર બીરાજતા હતા, તે તરફ જવાને માટે રવાના થયા. 11- ( तए ण सावत्थीए नयरी! ) न्यारे २४४४ परिवाने वैशाલિક શ્રાવક મહાવીરના ઉપાસક પિંગલક નિગ્રંથે પાંચ પ્રશ્નો પૂછ્યા અને તે પ્રશ્નો ત્રણ વખત પૂછવા છતાં પણ તેઓ તેને ઉત્તર આપી શક્યા નહીં ત્યારે તે પ્રશ્નોના યથાર્થ ઉત્તર જાણવાની જિજ્ઞાસા તેમના સ્કન્દકના મનમાં જાગી અને તે સમયે યોગ પણ એ બન્યો કે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરનું એજ સમયે શ્રાવસ્તી નગરીમાં શુભાગમન થયું. લેકેને મુખેથી પ્રભુના આગમનના સમાચાર સાંભળીને સ્કન્દકે પિતના સૌભાગ્યની પ્રશંસા કરી અને તે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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