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________________ ५२० भगवतीपत्रे निकां च करोटिकां च केशरिकांच षण्णालकां च अंकुशं च पवित्रकं च गणेत्रिकां च छत्रकं च उपानहौ च पादुके च धातुरक्ताश्च गृह्णाति, गृहीत्वा परिव्राजकाव सथात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य त्रिदण्ड-कुण्डिका-कांचनिका-करोटिका वृषिका-केशरिका-षण्णालकांकुशक-पवित्रक-गणेत्रिका-हस्तगतः छत्रोपानत् संयुक्तो धातुरक्तवस्त्रपरिहितः श्रावस्त्या नगर्या मध्यं मध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य मिसियं च करोडियं च केसरियं च ) उसने वहां से त्रिदंड कुंडी, रुद्राक्ष माला, करोटिका, वृषिका आसन, केशरिका (छण्णालयं च) षण नालकं त्रिकाष्ठिका, (अंकुसयं च) अंकुशक-वृक्षों के ऊपरसे पत्तों आदि को एकत्रित कर ने के निमित्त अंकुश के जैसा एक प्रकारका (पवित्तियं च) पवित्रक अंगुलीयक (गणेत्तियच) गणेत्रिका ( छत्तयं च छत्रक (उवाहणाओय) पगरखे (पाउयाओय ) काष्टकी खडाऊँ (धाउरत्ताओ) और गैरिक आदि धातुओंसे रक्त शाटिकाको लिया (गेण्हइ) गेण्हित्ता और लेकर (परिव्वायगावसहाओ) परिव्राजकावसथ मठसे (पडिनिक्खमइ ) बहार निकला ( पडिनिक्खमित्ता) बाहर निकल कर (तिदंडकुं. डिय कंचणियकरोडियमिसिय केसरिय-छण्णालय-अंकुसय-पवित्तय गणेत्तिय हत्थगए) त्रिदण्डि, कुण्डिका कांचनिका, करोटिका, केशरिका, षनालका, अंकुशक, पवित्रक, गणेत्रिक, इन सब को हाथ में रखकर (छत्तोवाहणसंजुत्ते ) छत्र को तानकर और उपानह पगरखे पहन (तिदंड च कुंडियच कंचणियं च करोडियं च भिसिय च केसरिय प) तभार ત્યાંથી ત્રિદંડ, કમંડળ, રુદ્રાક્ષની માળા, કટિકા (માટીનું પાત્ર વિશેષ) वृषि-मासन 1ि, ( मोटु सा३ ४२१॥ भाटेने३।३) ( छण्णालयं च ) १९,नास-त्रि४०४४१, ( अंकुसयं च) मश: वृक्षो ५२थी पायाने 1381 ४२वा माटेर्नु मशन २0१२साधन, (पवित्तिय च) पवित्र मही, (गणेत्तिय' च ) गणेत्रि, (छत्तय च ) छत्र ( उवाहणाओ य) ५१२ ( पाउयाओ य ) पाहुसे, धाउरत्ताओ ) म गै२ि४ पोरे धातुम। १३ शेखi वसो (गेण्इ ) बीघi. (गेण्हित्ता) ते ४थी वस्तु न ( परिव्वा यगवसहाओ) परिवाना ममाथी ( पडिनिक्खमइ ) तसे। ५७२ नीvया, (पडिनियमित्ता) १९८२ नाणीने (तिदंड, कुंडिय, कंचणिय, कगेडिय, भिसिय, केसरिय, छण्णालय, अकुसय, पवित्तय, गणेत्तिय हत्थगए) त्रि, भ31, રુદ્રાક્ષની માળા કટિકા, વૃષિકા, કેશારિકા, ત્રિકાષ્ઠિકા, અંકુશક, અંગૂઠી અને शनिशाने डायमा अड ४शन (छत्तोवाहणसंजुत्ते ) छत्री उधान मने पग શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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