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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०१ सू०७ स्कन्दकचरितनिरूपणम् वैशालिकश्रावकाय चतुर्थ्यर्थे षष्ठी 'किंचि वि पमोक्खं अक्खाइ' किश्चिदपि प्रमोक्षम् =उत्तरम् आख्यातुम् कथयितुम् । अतएव ' तुसिणीए ' तूष्णीकः मौनमासादितः सन् 'संचिटइ' संतिष्ठते ।। 'तएणं से पिंगलए णियंठे बेसालियसावए' ततः खलु स पिंगलको निर्ग्रन्थः वैशालिकश्रावकः, खंदयं कच्चायणस्स गोतं ' स्कन्दकं कात्यायनगोत्रम् 'दोच्चंपि' द्विरपि-द्वितीयवारमपि ' तच्चंपि' त्रिरपि-तृतीयवारमपि ' इणमक्खे' इममापेक्षम्=प्रश्नं 'पुच्छे' अप्राक्षीत्-' मागहा' हे मागध ! हे स्कन्दक ! 'किं स अंते लोए' किं सांतो लोकः 'जाव केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वडइ वा हायइ वा एतावं ताव आइक्वाहि' यावत् केन मरणेन म्रियमाणो जीवो वर्तते पा हीयते वा एतावत्तावदाख्याहि, इह यावत् करणात् जीवसिदि. सिद्धानां ग्रहणं भवति । 'वुच्चमाणे एवम्' उच्यमानः कथ्यमानः एवम्-पतपेण पूर्वोक्तप्रकारेणेति । किं सान्तः लोकः, अनन्तः लोकः? सान्तः जीवः अनन्तो जीवः?,सान्ता सिद्धिः अनन्ता सिद्धिः ? सान्तः सिद्धः अनन्तः सिदः ?, तथा केन यस्स नियंठस्स किंचिवि पमोक्खं अक्खाइउं णो संचाएइ "वैशालिक श्रावक पिंगलक निर्ग्रन्थ के इन प्रश्नों का थोडा सा भी उत्तर देने के लिये समर्थ नहीं हो सका। केवल वह तुसिणीए संचिइ चुपचाप हीरहा ___ "तएणं से पिंगलए गियंठे वेसालिय सावए" जब निर्ग्रन्थ वैशालिक श्रावक ने उसे चुप चाप ही बैठा हुआ देखा तब कच्चायणस्स गोत्त खदयं " उन्हों ने उस कात्यायन गोत्री स्कन्दक परिव्राजक से" दोच्चंपि दुबारा भी और तच्चपि तिवारा भी इणमक्खेवं इन्हीं प्रश्नोंको पुच्छे “ पूछा कहा " मागहा" हे मागध हे स्कन्दक किं स अंते लोए जाब केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वडाइ वा हायइ वा एतावं ताव आइ. क्खाहि " लोक अन्त सहित" है कि अन्त विना का है यावत् इसी प्रकार जीव सिद्धि और सिद्ध अन्त सहित है कि अन्त रहित तथा संचाइए) Qules श्रा१४ ( मडावी२न। उपास) पिस मिथना में प्रश्नोन मिल पाम माथी श४या नडी भने तेथी तेस। (तुसिणीए संचिदुइ) युपया५ Rat on २६. (तएण से पिगलए णिय'ठे वेसालिए सावए ) न्यारे ते महावीरना उपास सिनिय तभने युपया५ मेटे या त्यारे तमाशु ( कच्चायणस्स गोत्त खंदयं ) त्यायन गोत्रीय २४४४ परिवाने (दोच्चपि ) भील भने (तच्च पि) श्री मत ५५ (इणमक्खेव) मे प्रश्न ( पूच्छे )५७या है (मागहा ! ) 3 भागध! (3 -४४४) (किं स अते लोए जाव केण वा मरणेण मरमाणे जीवे व वा हायइ वा एतावताव आइक्खाहि) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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