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________________ ५०४ भगवतीसूत्रे गोत्रः पिंगलकेन निर्ग्रन्थेन वैशालिकश्रावकेणेममाक्षेपं पृष्टः सन् शंकितः कांक्षितो विचिकित्सितो भेदसमापन्नः कलुषसमापन्नो न शक्नोति पिंगलकाय निर्ग्रन्थाय वैशालिकश्रावकाय किंचिदपि प्रमोक्षमाख्यातुम् तूष्णीकः संतिष्ठते । ततः स पिंगलको निर्ग्रन्थः वैशालिकश्रावकः स्कन्दकं कात्यायनगोत्रं द्विस्त्रिरपि इममाक्षेपमपाक्षीत्-मागध ! सांतो लोको यावत् केन वा मरणेन म्रियमाणो जीवो पर्द्धते से खदए कच्चायणस्स गोत्ते) कात्यायन गोत्र वाला वह स्कन्दक वेसालिय सावएणं) भगवान महावीरके वचन सुनने में रसिक यने हुए (पिंगलएणं नियंठेणं) पिंगलण निर्ग्रन्थ के द्वारा ( इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे) जब इस प्रकार के प्रश्नों का विषयभून बनाया गया तब ( संकिए कंखि ए वितिगिच्छिए, भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने ) शंकायुक्त हो गया कांक्षा युक्त हो गया, विचिकित्सायुक्त हो गया। और (वेसालिय सावयस्स पिंगलस्म नियंठस्स पमोक्खं किंचिवि आक्खाइउं णो संचाएइ) वैशालिक श्रावक पिंगलक निर्ग्रन्थ के प्रश्नों का कुछ भी उत्तर देने के लिये समर्थ नहिं होसका। (तुसिणोए संचिढइ ) केवल चुप ही रहा । (तएणं से वेसालियानावए पिंगलए नियंठे कच्चायणस्स गोतं खंदयं दोच्चंपि तच्चवि इणमक्खेवं पुच्छे ) चुपचाप रहा देखकर वैशालिक श्रावक पिंगलक निग्रंथ ने कात्यायन गोत्री उस स्कन्दक से दुबारा भी तिबारा भी इन्ही प्रश्नों को पूछा (मागहा कि स अन्ते लोए जाव केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वड्इ वा हायइ वा) हे मागध ! लोक अन्त ( तएण' से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते वेसालियसाधएण' पिंगलएणं निय ठेणइणमक्खेवं पुच्छिए समाणे ) क्यारे भगवान महावीरना क्यनामा श्रद्धा रामनार પિંગલક નિગ્ન થવડે કાત્યાયન ત્રીય સકંદકને આ પ્રકારના પ્રશ્નો પૂછવામાં साव्या त्यारे (संकिए कंखिए वितिगिच्छिए, भेदसमावन्ने, कलुससमावन्ने) તે સ્કન્દક પરિવ્રાજક શંકાયુક્ત, કાંક્ષાયુક્ત, અને વિચિકિત્સાયુક્ત થઈ ગયા सनतेसालेह तथा सुषमावने पाभ्या. (वेसालियसावयस्स पिंगलस्स नियंठस्स पामोक्खं किं चि वि अक्खाइउ णो संचाएइ) तसा मडावीरना पास पि. * नियना प्रश्नोन उत्त२ माथी १४ नडी ( तुसिणीए संचिट्ठइ) तथा तमा यु५ २४ २द्या. ( तएण से वेसालियसावए पिंगलए नियठे कच्चायस्स गोत्त खंदय दोच्च ितच्चंपि इणमक्खेवं पुच्छे) तेभने युपया५ २सा निधन વિશાલિક શ્રાવક પિંગલક નિJથે કાત્યાયન ગોત્રીય તે સ્કન્દક ને બીજી વાર ५५ मे प्रश्नो पूच्या अनेत्री वा२ ५४ पूनी पूछयां (मागहा! कि त अते लोए जाव केण वा मरणेण मरमाणे जीवे वढइ वा हायइ वा) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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