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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० २ उ० १ सू० ७ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५०३ च्छति, उपागत्य स्कन्दकं कात्यायनगोत्रमिममाक्षेपमनाक्षीत्-मागध ! किं सान्तो लोकः, अनंतो लोकः सान्तो जीवः अनंतो जीवः सान्ता सिद्धिः अनंता सिद्धिः, सान्तः सिद्धः, अनंतः सिद्धः केन वा मरणेन म्रियमाणो जीवः वर्द्धते वा हीयते वा, एतावत् तावदाख्याहि उच्यमाने एवम् , ततः स स्कन्दकः कात्यायनवेसालिए सावए) वैशालिक श्रावक विशाला भगवान की माता का नाम था, उनका पुत्र होने से भगवान महावीर वैशालिक कहलाये। वैशालिक भगवान महावीर, उनका श्रावक अर्थात भगवान महावीर के वचन सुनने में रसिक वे पिंगलक निर्ग्रन्थ ( अन्नया कयाइं) किसी एक दिन (जेणेव कच्चायणस्सगोते खंदए तेणेव उवागच्छइ ) जहां कात्यायन गोत्री स्कन्दक था वहाँ गये। उवागच्छित्ता वहां जाकर कच्चायणस्सगोतं खंदगं ) उन्होंने उस कात्यायन गोत्रवाले स्कन्दक से (इणमक्खेवं पुच्छइ) इस प्रश्नको पूछा (मागहा ! किं स अंते लोए अणंते लोए ) हे मागध ! लोक सान्त है कि अनंत है ? (स अंते जीवे अणंते जीवे) जीवसान्त है कि अनन्त है ? (सअन्ता सिद्धी अणंतासिद्धी) सिद्धि अन्त सहित है कि अन्त रहित है ? (केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वडा वा हायइ वा) अथवा किस मरणसे मरा हुआ जीव बढता है और घटता है ? ( एवं पुच्चमाणे एतावं ताव आयक्खा हि ) इस प्रकार से मेरे द्वारा प्रश्न के विषयभूत बनाये गये तुम इन मेरे प्रश्नोंका उत्तर दो (तएणं ભગવાનની માતાનું નામ વિશાલા હતું. વિશાલાના પુત્ર હોવાથી તેમને માટે અહીં વૈશાલિક શબ્દનો પ્રયોગ થયે છે. “શાલિક શ્રાવક” એટલે ભગવાન महावीरन वयनामा श्रद्धा रामना२ ते पि निथ (अन्नया कयाई) मे हिवस ( जणेव कच्चायणस्सगोत्ते खंदए तेणेव उवागच्छइ ) ज्यां त्यायन गोत्रीय २४४४ परिवा४ वि२४ ता त्यां गया. ( उवागच्छित्ता) त्याने ( कच्चायणस्स गोत्त खंदगं इणमक्खेव पुच्छइ ) तमो तो अत्ययन सत्रीय २७४४ने २मा प्रमाणे प्रश्न पूछया ( मागहा! किं स अते लोए अणते लोए) उ माध! सो अन्त सहित छ , अन्त २डित छ. (स अते जीवे अण'तेजीवे) ०१ अन्त युन्त छ मत सहित छ. (स अंता सिद्धि, अणता सिद्धि) सिद्धि मत सहित छ मत २हित छ. ( केण वा मरणे णं मरमाणे जीवेवड्ढइ वा हायइ वा ) ४या भ२४थी भरता पनी ससा२ १धे छ, भने ४॥ ज्या भरथी भरतां बना ससार घटे छ. ( एव वुच्चमाणे एतावं ताव आयक्खाहि) में मापन २ ॥ प्रश्नो पूछ्या छ तेन तमे वा मापो. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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