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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०१ सू०६ 'मडाई' अनगारस्वरूपनिरूपणम् ४९५ अत्र यावत्पदेन निरुद्धसंसारे निरुद्धसंसारपवंचे वोच्छिन्नसंसारे इत्यादि प्रश्नप्रकरणोक्तसर्वविशेषणानां संग्रहः करणीयः, हे गौतम ! पूर्वकथितनिरुद्धसंसारादि विशेषणविशिष्टो मृतादी निग्रन्थः न पुनः संसारं प्राप्नोतीति भावः । एतादृशो निग्रन्थजीवः केन केन शब्देन व्यवहरणीय इत्याशयेनाह-' से गं भंते' इत्यादि। ' से णं भंते ' स खलु भदन्त ! 'किं वत्तव्यं सिया' किं वक्तव्यं स्यात् , केन शब्देन व्यवहरणीय इत्यर्थः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । ' गोयमा' हे गौतम ! 'सिद्धेत्ति वत्तव्यं सिया' सिद्ध इति वक्तव्यं स्यात् , सिद्ध इति शब्देन व्यवहरणीयः कृतसकलकार्यवात् । 'बुद्धेत्ति वत्तव्वं सिया' बुद्ध इति वक्तव्य स्यात् , विमलकेवलालोकेन सकललोकालोकयोर्दर्शकत्वात् , 'मुत्तेत्ति वत्तव्यं सिया' मुक्त इति वक्तव्यं स्यात् , नष्टसकलकर्मत्वात् ' पारगएत्ति वत्तव्वं सिया' पारजाता है । ऐसा श्रमण निर्ग्रन्थ जीव किस किस शब्द के द्वारा व्यवहारणीय होता है ? ऐसा पूछने के अभिप्राय से अब गौतम स्वामी प्रभु महावीर से प्रश्न करते हैं-(से णं भंते ! किं वत्तव्वं सिया) हे भदन्त ! वह पूर्वोक्त विशेषण वाला श्रमण निर्ग्रन्थ किन २ नामों से कहा जाता है ? तब प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (सिद्धे त्ति वत्तव्वं सिया) वह (सिद्ध) इस शब्दसे व्यवहार करनेके योग्य बन जाता है-क्यों कि वह अपने सकल कार्यों को कर चुका है। (बुद्धे त्ति वत्तव्वं सिया) विमल केवलरूप अलोक से वह सकल लोक और अलोक का साक्षात् ज्ञाता द्रष्टा हो जाने के कारण (बुद्ध) इस शब्द से व्यवहार करने योग्य हो जाता है। (मुत्ते त्ति वत्तव्वं सिया) ज्ञानावरण आदि आठो कर्मनष्ट हो जाने के कारण वह (मुक्त) इस शब्द से कहने योग्य हो जाता है । (पारगए त्ति वत्तव्वं सिया) संसार से पारगामी बन जाने કયાં ક્યાં નામે ઓળખવામાં આવે છે તે જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામી મહાवीर प्रसुने पछे छ ( से णं भंते ! कि वत्तव्य सिया) 3 मावन्! पूवात વિશેષણોવાળા તે શ્રમણ નિગ્રથને ક્યાં ક્યાં નામે ઓળખવામાં આવે છે ! उत्तर- (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (सिद्धे,त्ति वत्तव्य सिया) तमने भाटे. सिद्ध પદને પ્રવેગ કરી શકાય છે કારણ કે તેમણે તેમનાં તમામ કાર્યો સિદ્ધ કરી सीधा डाय छे. (बुद्धत्ति वत्तव्व सिया) विभा विज्ञान तथा समस्त લેક અને અલકના જ્ઞાતા અને દ્રષ્ટા બની જાય છે તેથી તેમને “બુદ્ધ પણ &डी शय छे. (मुत्तेत्ति वत्तव्य सिया) ज्ञाना१२०ीय वगेरे माडे भनि। क्षय पान ४२0 तभने "भुत" ५ डी शय छे. “पारगए त्ति वत्तव्य सिया) तेभरे ससारने पा२ ध्याय छ- संसार सागरने ते।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨