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भगवती सूत्रे
स्यात्,
गौतम सिद्ध इति वक्तव्यं स्यात् बुद्ध इति वक्तव्य स्यात् मुक्त इति वक्तव्यं स्यात्, पारगत इति वक्तव्यं स्यात्, परंपरागत इति वक्तव्यं स्यात्, सिद्धः बुद्धः मुक्तः परिनिर्वृतः अन्तकृतः सर्वदुःखमहीण इति वक्तव्यं स्यात्, तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति भगवान् गौतमः श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्थित्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति ॥ ०६ ॥
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आदि गतिरूप संसार को प्राप्त नहीं करता है । ( से णं भंते! किं वत्तo सिया ? हे भदन्त ! आत्मकल्याण करने वाला वह श्रमणनिर्ग्रन्थ अमगार किस नाम से कहा जा सकता है ? ( गोयमा ) हे गौतम ! ( सिद्धेति वक्तव्यं सिया) पूर्वोक्त विशेषण वाला वह श्रमण निर्ग्रन्थ अनगार (सिद्ध ) इस नाम से कहा जा सकता है । (बुद्धेत्ति वत्तव्वं सिया ) बुद्ध इस नाम से कहा जा सकता है। (मुत्तेत्ति वत्तव्वं सिया) (मुक्त) इस नाम से कहा जा सकता है। (पारगए ति वक्तव्वं सिया) ( पारगत ) इस नाम से कहा जा सकता है । ( परंपरगए त्ति वक्तव्वं सिया ) ( परंपरागत ) इस नाम से कहा जा सकता है । (सिद्धे बुद्धे मुत्ते, परिनिब्बुडे अंतकडे, सव्वदुक्खपहीणे वित्तवं सिया) सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत, अन्तकृत, सर्वदुक्खप्रहीण इस तरह इन शब्दों द्वारा वह कहा जा सकता है । ( सेवं भंते ! सेवं भंते! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नर्मसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भोवेमाणे विहरइ ) हे भदन्त ! आपने जो कहा है वह ऐसा
संसारमा इरी जन्म लेता नथी. ( से भंते ! किं वत्तवं सिया ? ) हे लजवन् આત્મકલ્યાણ કરનાર તે શ્રમણ નિગ્રંથને કયાં કયાં નામે એળખી શકાય ! ( गोयमा ! ) डे गौतम! ( सिद्धेत्ति वत्तव्वं सिया) पूर्वोस्त विशेषशेोवाणा ते श्रमषु निर्थ थने “सिद्ध" नाभथी उही शाय छे, ( बुद्धेत्ति वत्तव्त्रं खिया) “ye” yg kel aku 3, (gàfa qas feren) મુક્ત પણ કહી शाय छे, ( पारगए त्ति वत्तव्वं सिया ) પારંગત
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પણ કહી શકાય છે ( पर परगए वितव्वं सिया ) "५२ परागत" पशु उही शाय छे, ( सिद्धे, बुद्धे,मुत्ते, परिनिव्वुडे, अंतकडे, सव्वदुक्खपहीणेत्ति वत्तव्वं सिया) सिद्ध, युद्ध, भुक्त परिनिर्वृत, तट्टत भने सर्व दुःख प्रडीए, पशु उही शाय छे. (सेवं भते ! सेवं भंते ! भगवं गोयमे समणं भगव महावीर वंदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ) हे भगवन् ! माये ने उधुं ते યથાય જ છે હે ભગવન્! આપની વાત સાચી
છે.
આ પ્રમાણે કહીને ભગવન્
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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