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भगवतीने स्यात् , यदा तु भवनादि धर्मवत्वस्य विवक्षा क्रियते तदा भूत इत्यन्वर्थनाम संभवेन भूत इति व्यवहारस्य संभवात् । 'जीवेत्ति वत्तव्वं सिया' जीव इति क्तव्यं स्यात् , यदा तु उपयोगादिमत्त्वधर्मस्य विवक्षा क्रियते तदा जीव इति व्यवहारस्याप्यदुष्टत्वात् , 'सत्तेत्ति बत्तव्वं सिया' सत्त्व इति वक्तव्यं स्यात् , यदा तु शुभाशुभयुक्तत्वरूपधर्मस्य विवक्षा क्रियते तदा सत्त्व इति नामतोपि व्यवहारस्य कर्तु शक्यत्वादिति, 'विष्णुत्ति वत्तव्वं सिया' विज्ञ इति वक्तव्यं स्यात् , कटुकषायादि रसास्वादनकर्तृत्वरूपधर्मविवक्षायां विज्ञ इति व्यवहारस्य संभवादिति । 'पेदेत्ति वत्तवं सिया' वेद इति बक्तव्यं स्यात्, सुखदुःखादिमत्वानुभवकर्तृत्वात्मकधर्मवि. वक्षायां वेद इति व्यवहारस्य संपादनसंभवादिति । 'पाणे भूए जीवे सत्ते विष्णू समय भवन (होना) आदि धर्मसे युक्तताकी विवक्षा करने में आती है उस समय उसमें ( भूत ) इस अन्वर्थ सार्थक नाम की संभवता से ( भूत) ऐसा व्यवहार हो सकता है । (जीवे त्ति वत्तव्वं सिया) जिस समय उपयोग आदि धर्म से युक्तता की विवक्षा की जाती है उस समय उसमें (जीव) ऐसा व्यवहार भी हो सकता है। इसमें कोई दोष.की बात नहीं है। (सत्तेत्ति वत्तव्वं सिया) जिस समय शुभ अशुभ कर्म से युक्तता की विवक्षा की जाती है उस समय ( सत्त्व) इस नाम से उसका व्यवहार किया जा सकता है। (विण्णु त्ति वत्तव्वं सिया) जिस समय कटुक, (कडवा) कषाय आदि रसोंके आस्वादनकर्तृत्वरूप धर्मको विवक्षा कीजाती है उस समय (विज्ञ) इस शब्दसे भी वह कहा जा सकता है। (वेयोत्ति वत्तव्वं सिया) जिस समय सुख दुःख आदिको अनुभव करने रूप धर्म की विवक्षा की जाती है उस समय उसमें ( वेद ) इस शब्द
જ્યારે થવું વગેરે ધર્મથી યુક્ત પણાની વિવક્ષા કરવામાં આવતી હોય ત્યારે "भूत" नाम अर्थयुत ( साथ 8 ) साणे छ भाटते समये “भूत" शहने। उपयो ४१ शय छे. "जीवे त्ति वत्तव्व सिया" तेने " ५५ डी શકાય છે. જ્યારે ઉપગ આદિ ધર્મથી યુક્ત વિરક્ષા કરવામાં આવતી હોય त्यारे तेने भाट "०" शहने५९४ उपयो। ४२१ शय छे. “सत्ते त्तिः
पत्तव्वं सिया" तेने "सत्य" ५५] वाय छ, न्यारे शुभ मशुम भथी યુક્ત પણાની વિવફા કરાતી હોય ત્યારે “સ” નામથી પણ તેને ઓળખી शाय छे. “विण्णु त्ति वत्तव्वं सिया" न्यारे ४४वी, माटो, मधु२ प२ રસના આસ્વાદન કરવારૂપ ધર્મની વિવક્ષા કરવામાં આવતી હોય ત્યારે તેને भाट "विज्ञ" शन्न प्रयोग ५६ रीशाय छे. "वेयोत्ति वत्तवं सिया" જ્યારે સુખદુઃખ વગેરેના અનુભવ કરવારૂપ ધર્મની વિવક્ષા કરવામાં આવતી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨