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________________ ४८४ भगवती सूत्रे माणिति वा उच्छ्यसति वा निःश्वसति वा तस्मात् प्राण इति वक्तव्यं स्यात् । यस्माद् भूतो भवति भविष्यति च तस्मात् भूत इति वक्तव्यं स्यात् , यस्मात् अ. जीचत जीवति जीवत्वम् आयुष्कं च कर्म उपजीवति तस्मात् जीव इति वक्तव्य स्यात् यस्मात् सक्तः शुभाशुभैः कर्मभिः तस्मात् सत्त्व इति वक्तव्यं स्यात् , यस्मात् तिक्तकटुकषायाम्लमधुरान् रसान् जानाति तस्मात् विज्ञ इति वक्तव्यं स्यात् , से कहा जा सकता है ? (गोयमा! जम्हा आणमह वा पाणमह वा उस्ससइ वा णीससह वा तम्हा पाणेत्ति वत्तव्वं सिया) हे गौतम ! जिस कारण से वह मुनि जीव आभ्यन्तर श्वास को लेता है, आभ्यन्तर श्वास को छोड़ता है, बाह्य श्वास को ग्रहण करता है और बाह्यश्वास को छोड़ता हैं इस कारण वह (प्राण ) इस शब्द से कहा जा सकता है । ( जम्हा भूए, भवइ, भविस्सइ य तम्हा भूए त्ति वत्तव्यं सिया) जिस कारण वह हुआ है, होता है, होगा, इस कारण वह (भूत) इस शब्द से कहा जा सकता है । ( जम्हा जीवे जीवह जीवत्तं आउयं च कम्मं उवजीवह तम्हा जीवेत्ति वत्तव्वं सिया) जिस कारण से यह भूतकाल में जीव के धर्म को प्राप्त हुआ वर्तमान में जीता है, जीवत्व और आयुष्क कर्म का यह अनुभव करता है और भविष्यत् में भी जीवगा इस कारण यह (जीव) इस शब्द से कहा जा सकता है। (जम्हा सत्ते सुभासुभेहि कम्महि तम्हा सत्तेत्ति वत्तव्वं सिया) जिस कारण यह शुभ और अशुभ कर्मों के द्वारा बद्ध हुआहै इस कारण यह (सत्व) इस शब्द से कहा जा सकता है । (जम्हा त्तित्तकडु कसाय अंविलमहुरे ( गोयमा ! जम्हा आणमइ वा पाणमइ वा उस्ससइ वा णीससइ वा तम्हा पाणेत्ति वत्तव्वं सिया) ले १२ ते मुनिना ७५ पाद्यान्यन्त२ श्वास अने नि:श्वासने ગ્રહણ કરે છે અને છેડે છે તે કારણે તેને “પ્રાણ” શબ્દથી ઓળખી शाय छ (जम्हा भूए, भवइ, भविस्सइ य तम्हा भूए त्ति वत्तव्यं सिया) २ ४१२२ तेनी उत्पत्ति थ। उती, थाय छ भने थशे ते ४२0 तेने “भूत " शथी सभी शय छे. ( जम्हा जीवे जीवइ जीवत्तं आउयं च कम्म उव. जीवइ तम्हा जीवेत्ति वत्तव्वं सिया ) २ रणे तेथे भूतभा बना ધર્મને પ્રાપ્ત કર્યા હતા, વર્તમાનમાં જીવે છે જીવત્વ આયુષ્ય કર્મને તે અનુભવ કરે છે, અને ભવિષ્યમાં પણ આવશે, તે કારણે તેને માટે “જીવ” शण्ट वापरी शाय छे. (जम्हा सत्ते सुभासुभेहिं कम्मेहिं तम्हा सत्ते त्ति वत्तव्वं सिया) २ पारणे ते शुल मते मशुल भी 43 पद्ध छ ते २२ "q" v४थी सभी शय छे. (जम्हा त्तित्त कडु कसाय अंविलमहुरे रसे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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