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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २ उ०१ सू०५ प्राणभूतादिस्वरूपनिरूपणम् ४८३ छाया- तत् खल भदन्त ! किमिति वक्तव्यं स्यात्, गौतम ! प्राण इति वक्तव्यं स्यात् , भूत इति वक्तव्यं स्यात् , जीव इति वक्तव्यं स्यात् , सत्व इति वक्तव्यं स्यात् , विज्ञ इति वक्तव्यं स्यात् , वेद इति वक्तव्यं स्यात् , प्राणो भूतो जीवः सत्त्वो विज्ञो वेद इति वक्तव्यं स्यात् , तत्केनार्थेन भदन्त ! स खलु प्राण इति वक्तव्यं स्यात् , यावत् वेद इति वक्तव्यं स्यात् गौतम ! यस्मात् आनिति क्या ? इस प्रश्न को पूछने की इच्छा से गौतमस्वामी प्रभुसे प्रश्न करते हैं-' से णं भंते' इत्यादि । सूत्रार्थ-( से णं भंते ! किं ति वत्तव्वं सिया) हे भदंत ! यह निम्रन्य मुनि जीव किस शब्द से वक्तव्य हो सकता है ? ( गोयमा ! पाणे त्ति वत्तव्वं सिया) वह निर्ग्रन्थ मुनि जीव "प्राण" इस शब्द से कहा जा सकता है। (भूएत्ति वत्तव्वं सिया) "भूत" इस शब्द से कहा जा सकता है। (सत्तेत्ति वत्तव्वं सिया) "सत्व" इस शब्दसे कहा जा सकता है। (विण्हु त्ति वतव्वं ) "विज्ञ" इस शब्द से कहा जा सकता है वेयो. ति वत्तव्वं सिया) "वेद" इस शब्द से कहा जा सकता है ( पाणे, भूए जोवे, सत्ते विष्णू वेदेत्ति वत्तव्वं सिया) प्राण, भूत, जीव, सत्त्व विज्ञ, और वेद इन सब शब्दों से वह कहा जा सकता है । (से केणटेणं भंते! एवं धुच्चइ) हे भदंत ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि ( से ण पाणेत्ति वतव्वं सिया जाव वेयो ति वत्तव्वं सिया) वह मुनि जीव (प्राण ) इस शब्द से कहा जा सकता है यावत् ( वेद ) इस शब्द प्रश्न उत्तर ०negपाने भाटे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने “ से णं भंते " ઇત્યાદિ પદથી પૂછે છે. सूत्राय-(सेणं भंते कि ति वत्तव्वं सिया ) मापन निय भुनिना अपने ४या श५४थी वची शय छ ! ( गोयमा ! पाणेत्ति वत्तव्वं सिया ) निय भनिने 'प्रा" सहाथी परीकी शाय छ, (भूए ति वत्तव्व सिया) "भूत" ५४थी ५५ सभी राय छ, ( सत्ते त्ति वत्तव्वं सिया) 'सत्व" शपथी ५५५ मामी ४य छे. (विष्णु त्ति वत्तव्वं सिया ) “विज्ञ' शv४थी ५४ सभी शय छ, (वेयोत्ति वत्तव्य सिया ) " वेद" शपथी सभी शय छे. (पाणे भूए, जीवे, सत्ते, विष्णू वेदेत्ति वत्तव्वं सिया " तन પ્રાણ, ભૂત જીવ, સત્વ, વિજ્ઞ અને વેદ, એ બધા શબ્દોથી ઓળખી શકાય છે (से केणटूठेणं भंते ! एवं वुच्चइ) 3 मावन् ! २५ ॥ २ सयु ४ो छ। ( से णं पाणेत्ति वत्तव्वं सिया जाव वेयो त्ति वत्तव्यं सिया ) ते मुनिने "" भूत, ७१, सत्य वगैरेयी सभी शाय छ, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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