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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०१ सू०२ उच्छ्वासनिःश्वासस्वरूपनिरूपणम् १५७ पृथिव्याधारभ्य वनस्पतिपर्यन्ताः, 'आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा निरससंति वा' आनन्ति वा प्राणन्ति वा उच्छ्वसंति वा निःश्वसंति वा, एते एकेन्द्रियजीवा आनप्राणादितया कानि द्रव्याणि गृह्णन्तीति भावः । भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । ‘गोयमा' हे गौतम ! 'दव्यत्रो णं अणंतपएसियाई दब्वाई' द्रव्यतः खलु अनंतपदेशिकानि द्रव्याणि आनन्ति वा प्राणन्ति वा इत्यवेतनेन सम्बन्धः । · खेतो असंखेज्जपएसोगाढाई' क्षेत्रतोऽसंख्यातपदेशावगाढानि द्रव्याणीति भावः । अत्र प्रदेशशब्देन आकाशप्रदेशा गृह्यन्ते । 'कालओ अन्नयरठिइयाइं ' कालतोऽन्यतरस्थितिकानि, एकद्वयादिसमयस्थिति केष्वन्यत्तरस्थितिकानि, 'भावओ चण्णमंताई' भावतो वर्णवन्ति, कृष्णादिवर्णयुक्तानि, जीव (आणमंति वा, पाणमंति वा, उस्ससंति, वा निस्ससंति वा) भीतर बाहर के श्वास में और नि:श्वास में ग्रहण करते हैं। तात्पर्य इस प्रश्न का यह है कि ये एकेन्द्रिय जीव आन प्राण आदि-श्वासोश्वास आदि रूप से किस प्रकार के द्रव्यों को ग्रहण करते हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! (दव्याओ णं अर्णतपएसियाई दवाइं ) वे एकेन्द्रिय जीव द्रव्य की अपेक्षा से अनंत प्रदे शवाले द्रब्यों को श्वासोच्छ्वासरूप से ग्रहण करते हैं, (खेत्तओ) क्षेत्र की अपेक्षा से (असंखेजपएसोगाढाई) आकाश के असंख्येय प्रदेश में रहे हुए द्रव्यो को ग्रहण करते हैं। यहां प्रदेश शब्द से आकाश के प्रदेश लिये गये हैं। ( कालओ) काल की अपेक्षा से ( अन्नयरठिइयाई एक दो आदि समय रूप स्थिति में से किसी एक स्थिति वाले द्रव्यो को ग्रहण करते हैं । ( भावओ) भाव की अपेक्षा से (वण्णमंताई ) कृष्ण पायथी बने पति सुधाना मेन्द्रिय खो “ आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा, निस्ससति वा" माह्याभ्यन्तर वासमा डा ४२ छ. अने છોડે છે! પ્રશ્નને ભાવાર્થ એ છે કે એકેન્દ્રિય જે શ્વાસોચ્છવાસમાં કઈ જાતનાં દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે! ભગવાન મહાવીર સ્વામી તેને આ પ્રમાણે उत्त२ मा छे “ गोयमा !” 3 गौतम ! “ व्यओणं अणंतपएसियाई दब्याई" એકેન્દ્રિય છે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ અનંત પ્રદેશવાળાં દ્રવ્યોને શ્વાસોચ્છવાસ ३थे घड ४२ छ, “खेत्तओ" क्षेत्रनी अपेक्षा "असंखेज्जपरसोगाढाइं" આકાશના અસંખ્યાત પ્રદેશમાં રહેલા દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે. અહીં “પ્રદેશ” श५४ १3 २ शनां ।। १ ४२। छे. “कालओ" नी अपेक्षा " अन्नयरठिइयाई ” मे, २ कोरे समय३५ स्थितिमा द्रव्योमाथी । ५७ मे स्थितिani द्रव्याने अड ४२ छ. 'भावओ" मानी अपेक्षा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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