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भगवती सूत्रे
उच्छ्वसंति वा निःश्वसंति वा जीवा एकेन्द्रिया व्याघाता निर्व्याघाताच भणितव्याः शेषा नियमात् पदिशम् ॥ ०२ ॥
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टीका- ' किं णं भंते ' किं खलु भदन्त । अत्र कि शब्दस्य सामान्यनिर्देशत्वात् कानि किं विधानी द्रव्याणीत्यर्थः, 'एए जीवा एते जीवाः, एकेन्द्रियाः हे गौतम! इस विषय में पहिले की तरह से ही जानना चाहिये यावत् वे छह दिशाओं में से अंदर बाहर के श्वास निःश्वास के अणुओं को वहन करते हैं । ( जीवा एगिंदिया वाघाय निव्वाघाया य भाणियन्वा सेसा नियम छद्दिसिं ) जीव और एकेन्द्रिय के संबंध में ऐसा कहना कि यदि कोई व्याघात प्रतिबंधक नहीं है तो वे समस्त दिशाओं में से श्वास निःश्वास के अणुओं को ग्रहण करते हैं और यदि प्रतिबंधक है तो वे छह दिशाओं में से श्वास निःश्वास के अणुओं को ग्रहण करते हैं और यदि प्रतिबंधक है तो वे छह दिशाओं के श्वास निःश्वास के अणुओं ग्रहण नहीं कर सकने के कारण कोई समय तीन दिशाओं में से' कोइ समय चार दिशाओं में से कोई समय पांच दिशाओं में से श्वास निःश्वास के अणुओं को ग्रहण करते हैं। बाकी समस्त जीव छहों दिशाओं में से श्वास निःश्वास के अणुओं को ग्रहण करते हैं ।
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टीकार्य -- (किं णं भंते ) यहां (किं) यह शब्द सामान्य का निर्देशक है । इसलिये इसका अर्थ यहां ( किस प्रकार के द्रव्यों को ) ऐसा होता है । (एए जीवा ) पृथिवी से लेकर वनस्पति तक के एकेन्द्रिय वा पाणमंति वा, उत्ससंतिवा, नीससंति वा ) हे गौतम! या विषयभां पशु આગળ મુજબ જ સમજવું છ દિશાઓમાંથી તે ખાહ્યાભ્યન્તર વાસ નિઃશ્વાસના પુદ્દગલાને ગ્રહણ કરે છે” ત્યા સુધીનું કથન આગળ મુજબ જ સમજવું. ( जीवा एगिंदिया वाघाय निव्वाघायाय भाणियव्या सेसा नियमा छद्दिसिं ) सामान्य જીવા અને એકેન્દ્રિય જી વિષે એવું કહેવુ જોઈએ કે જો કેાઈ વ્યાઘાત નડતા નહાય તેા તે બધી દિશાઓમાંથી શ્વાસ નિશ્વાસના પુલે ને ગ્રહણ કરે છે, પણ જો વ્યાઘાત નરસૈા હાય તેા છએ ક્રિશાએામાંથી શ્ર્વાસ નિઃશ્વા સના પુદ્ગલાને મહેણુ કરી શકતા નથી, પણ કોઇ વખત ત્રણ દિશાઓમાંથી, તા કોઈ વખત ચાર દિશાએમાંથી અને કોઈ વખત પાંચ દિશાઓમાંથી શ્વાસ નિ:શ્વાસના પુદ્ગલેાને ગ્રહણ કરેછે, ખાકીના તમામ જવા છએ દિશામાંથી શ્ર્વાસ નિ:શ્વાસના પુદ્ગલેાને ગ્રહણ કરે છે.
टीडार्थ - " किं णं भंते" सही "कि" यह सामान्यनु निर्देश छे. तेथी यहीं तेना अर्थ” उलतनां द्रव्याने येवो थाय छे. " ए ए जीवा " पृथि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨