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भगवतीसूत्रे __ छाया-किं खलु भदन्त ! एते जीवा आनन्ति वा प्राणन्ति वा उच्छ्वसंति वा, निःश्वसंति वा, गौतम ! द्रव्यतोऽनन्तप्रदेशिकाणि द्रव्यानि, क्षेत्रतोऽसंख्येयप्रदेशावगाढ़ानि कालतोऽन्यतरस्थितिकानि, भावतो वर्णवन्ति, गंधवंति, स्पर्शवन्ति आनन्ति वा माणन्ति वा उच्छ्वसंति वा, निश्वसंति वा, यानि भावतो वर्णवंति ___ उच्छ्वास निःश्वास का अधिकार होने से ही जीवादिक समुच्चय दण्डक और चौवीस दण्डकरूप २५ पदों में उच्छवास निःश्वास के स्वरूप को निर्णय करने के लिये गौतम स्वामी प्रश्न करते हुए कहते हैं कि 'किं णं भंते ! एए जीवा आणमंति वा पाणमंति बा' इत्यादि ।
(किं णं भंते ! एए जीवा ) हे भदन्त ! ये जीव किस प्रकार के द्रव्यों को (आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा निस्ससंति वा) भीतर के बाहर के श्वासरूप में लेते हैं और किस प्रकार के द्रव्यों को भीतर बाहर के निःश्वासरूप में छोडते हैं ? (गोयमा ! ) हे गौतम! (दव्यओ णं अणंतपएसियाई व्वाइं ) द्रव्य की अपेक्षा से अनंतप्रदेशी द्रव्यों को, (खेत्तओ असंखेजपएसोगाढाई) क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ हुए द्रव्यों को (कालओ अन्नयरठिईयाई ) काल की अपेक्षा किसी भी प्रकार की स्थिति वाले द्रव्यों को (भावओ वण्णमंताई, गंधमंताई, रसमंताई, फासमंताई ) भाव की अपेक्षा वर्णवाले, गंधवाले, रसवाले, स्पर्शवाले द्रव्यों को ( आणमंति वा पाणमंति वा)
ઉચ્છવાસ નિવાસને અધિકાર ચાલતો હોવાથી જીવાદિક સમુચ્ચય દંડક અને ગ્રેવીસ દંડકરૂપ પચીશ પદમાં ઉચ્છવાસ નિઃશ્વાસને નિર્ણય કરવાને માટે ગૌમત સ્વામી પ્રશ્ન પૂછે છે કે–
"कि णं भंते ! ए ए जीबा आणमंति वा पाणमंति वा । त्यादि. सूत्रार्थ- किं भंते ! ए ए जीवा) 4 ! ते ४तना द्रव्याने ( आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा १ ) माहास्यन्तर શ્વાસ રૂપે ગ્રહણ કરે છે, અને કઈ જાતના દ્રવ્યોને બાહ્યાભ્યન્તર નિવાસ ३ छ। छ! (गोयमा !) गौतम ! (दब्बओणं अणंतपएसियाई दवाई) द्रव्यनी अपेक्षा अनत प्रदेश द्रव्याने (खेत्तओ असंखेज्जपएसोगाढाइं ) क्षेत्रनी अपेक्षा असण्यात प्रदेशमा १८ च्येां द्रव्याने, (कालओ अन्नयर. ठिईयाई) पनी अपेक्षा अ५] andनी स्थितिi योने, (भावी वण्णमंताई, गंधमंताई, रसमंताई, फासमताइं) पनी अपेक्षा व मध रस मनपा द्रव्याने (आणमति वा पाणमंलि वा) तेथे पाहाय-२ श्वास३]
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨