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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ १०१० सू०३ क्रियाविषये प्रश्नोत्तरनिरूपणम् ४३५ वास्ति किम् ? । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । ' गोयमा' हे गौतम ! 'जं णं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति' ४ यत् खलु ते अन्ययूथिका एवमाख्यान्ति, एवं भाषन्ते, एवं प्रज्ञापयन्ति एवं प्ररूपयन्ति । 'तं चेव जाव' तदेव पूर्वोक्तमेव यावत् , अत्र यावच्छब्देन-" एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा-इरियावहियं च संगराइयं च' इत्यादि-पूर्वोक्तमन्यतीर्थिकमत सर्व संग्राह्यम् । 'जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमासु' ये ते एवमाहुः, मिथ्या ते एवमाहुः, 'अहं पुण गोयमा ' अहं पुनर्गौतम, ‘एवं आइक्वामि' ४ एवमाख्यामि, एवं प्रज्ञापयामि । एवं खलु एको जीवः 'एग समएणं' एकस्मिन् समये 'एक्कं किरियं पकरेइ' 'एकां क्रियां प्रकरोति, ‘स समयवत्तव्वयाए णेयध्वं' ( से कह मेयं भंते ! एवं पुच्चइ ) तो हे भदन्त ! जैसा वे कहते हैं क्या वह वैसा ही है ?
इसका उत्तर भगवान देते हुए कहते है-( गोयमा) हे गौतम ! (जं णं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्वंति ४ ) जो वे अन्ययूथिक ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापना करते हैं (तं चेव जाव) यहां यावत् शब्द से अन्यतीर्थिक संमत पूर्वोक्त ( एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं ) इत्यादि यह पाठ ग्रहण किया गया है-कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है इत्यादि, (जे ते एवमासु) सो जो उन्हों ने ऐसा कहा है ( मिच्छा ते एवमासु ) वह उन्हीं ने झूठा कहा है । ( अहं पुण गोयमा) हे गौतम ! मैं तो ( एवं आइक्खामि ) ऐमा कहता हूं, ऐसा भाषण करता हूं, ऐसी प्रज्ञापना करता हूं, ऐसी प्ररूपणा करता हूं, कि ( एवं खलु एगे जीवे ) एक जीव (एगेणं समएणं ) एक सध्यपथिली मने भी सां५२यिकी " से कहमेयं भंते ! एवं बुच्चइ ?" તે હે ભગવન! તેઓ એમ કેવી રીતે કહે છે?-શું તેમની માન્યતા સાચી છે?
तेनी पास माता मानछे “ गोयमा!" गौतम! "जणं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्ख ति ४" ते अन्य तीथि । मेरी छ, मेरे भाषण ४२, मेवी प्रज्ञापा ४रेछ, मेवी रे ५३५ । छ, 'तं चेव जाव" मी "यावत्" ५४थी. मन्य मतवाहीमान! " ०१ से सभये में लिया। ४२ छ" त्यादि तमाम पूर्वरित ५४ ७१ ४२पामा माव्यो छे, “जे ते एवमाहंस" भने २ तेभो अधुंछ “ मिच्छा ते एवमासु" ते तेमणे ह्यु छ-तेमनी त मान्यता सूद सरेसी छे. " अह पुण गोयमा ! " गौतम !
तो "एवं आइक्खामि" मे छु. मेलाषण ४३ छु, सवी प्रज्ञा. पना ४३ छु मने मेवी ५३५॥ ४३ छु “ एवं खलु एगे जोवे" मे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨