SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ પ્રશ્ન भगवती सूत्रे समये ऐर्यापथिक प्रकरोति-संपादयति ' तं समयं संपराइयं पकरेइ' तस्मिन् समये सांपरायिक प्रकरोति, तस्मिन्नेव समये सांपरायिकीं क्रियामपि संपादयति । 'जं समयं संपराइयं पकरेइ ' यस्मिन् समये सांपरायिकीं प्रकरोति, 'तं समयं ईरियावहियं पकरेड़ ' तस्मिन् समये ऐर्यापथिकीं प्रकरोति, तथा 'इरियाature - पकरणयाए सांपराइयं पकरेइ ' ऐर्यापथिव्याः प्रकरणतया सांपरायिकीं प्रकरोति ' संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेइ' सांपरायिक्या: प्रकरणतया ऐर्यापथिक प्रकरोति, ' एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति एवं रूल एको जीव एकस्मिन् समये द्वे क्रिये प्रकरोति, ' तं जड़ा ' तद्यथा-' इरियावहियं च संपराइयं च ' ऐर्यापथिकीं च सांपरायिकीं च ' से कहमेयं भंते एवं तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम् ? हे भदन्त ! यत्ते कथयन्ति तत्तथै 3 , समय में ( इरियावहियं ) ऐर्यापथिकी क्रिया को करता है ( तं समयं ) उसी समय में ( संपराइये ) वह सांपरायिकी क्रिया को भी ( पकरेइ ) करता है । तथा (जं समयं संपराइयं पकरेइ) जिस समय में जीव सांपरायिकी क्रिया करता है ( तं समयं ईरियावहियं पकरेइ ) उस समय वह ऐर्यापथिकी क्रया को करता है । (हरियावहियाए पकरणयाए साँप इयं पकरे ) ऐर्यापथिकी क्रिया कर लेने से जीब (सांपराइयं पकरे ) सांपaयिकी क्रिया करता है । ( संपराइयाए पकरणयाए ईरियावहियं पकरे ) सांपराइयिकी या कर लेने से ऐर्यापथिकी क्रिया करता है । ( एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेंति) इस तरह एक जीव एक समय में दो क्रियाओं को करना है । ( तं जहा ) जैसे (इरियावहियं च संपराइयं च ) एक ऐर्यापथिक को और सांपरायिकी को । 66 बहियं ” र्यापथिडी प्रिया उरे छे " तं खमयं " मे समये " संपराइयं पक रेइ " ते सांपायिडी डिया पशु रे छे, तथा “ जं समयं संपराइयं पकरेइ भे समये व सांपराविडी डिया रे छे " तं समय ईरियावहियं पकरेइ " ते समये थिडी डिया पशु रे छे. “ ईरियावहियाए पकरणयाए सांपराइयं पकरेइ " र्यापथिड्डी डिया हरी सेवाथी व " सांवराइयं पकरेइ " सांपरायिडी डिया रे छे, मने " संपराइयाए पकरणयाए ईरियावहियं पकरेइ " सांपरायिडी डिया उरी देवाथी धर्यापथिडी डिया पुरे छे. “ एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति " या रीते थे वो! समये मे डियागो रे छे-" तं जहा " ते थे प्रिया मा प्रमाणे “ ईरियावहिय' च संपराइय' च " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨ ܕܙ
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy