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________________ भगवतीस्त्रे एवं क्रियापि वर्तमानकाले एव युक्तेत्याशयेनाह-'पुवि किरिया' इत्यादि, 'पुचि किरिया अदुक्खा' पूर्व क्रिया अदुःखा, पूर्वकालिकी या क्रिया सा न दुःखकारणमिति 'जहा भासा तहा माणियव्वा' यथा भाषा तथा भणितव्या, अतः बोध कराने वाले होने से वह भूतकाल संबंधी भाषा भाषा है सो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि इसमें जो प्रत्ययोत्पादकत्व हेतु दिया गया है वह अपने साध्य के अभाव में भी रहता है अतः अनैकान्तिक है । साध्य के अभाव में भी रहने वाला हेतु अनैकान्तिक माना जाता है वह इस प्रकार से-क्यों कि सुनने वाले कोप्रतिपाद्य-जो विषय संबंधी ज्ञान कराया जाता है उसके प्रति हेतुता तो करादि चेष्टाओं में भी आती है। क्यों कि प्रतिपाद्य पुरुष उनकी चेष्टाओं द्वारा वाच्यार्थ का बोध कर लिया करता है । अतः (समय व्यतिक्रान्ते सति भाषिता भाषा भाषा प्रत्ययोत्पादकत्वात् ) यह हेतु करादि चेष्टाओं में भी चला गया होने से वहां भाषात्व के अभाव में अनैकान्तिक हो जाता है । तथा जो ऐसा कहा गया है कि अभाष की भाषा भाषा है सो यह कहना भी संगत नहीं है । कारण कि इस प्रकार की मान्यता में सिद्ध जीव और अचेतन पदार्थ में भाषा की प्राप्ति होने का प्रसंग आता है । इसी तरह क्रिया भी वर्तमान काल में ही युक्त है-इसी आशय से सूत्रकार ने (पुब्बि किरिया अदुक्खा) ऐसा कहा है कि पूर्वकाल में की गई क्रिया दुःख की हेतु नहीं होती है। (जहा ત્પાદકત્વ હેતુ આપવામાં આવેલ છે તે તેના સાધ્યના અભાવમાં પણ રહે છે, અનૈકાતિક છે સાધ્યના અભાવમાં પણ રહેનાર હેતુને અગ્નિકાન્તિક હેતુ मानवामा मावे छे. ते मा प्रमाणे-सामना२ने-प्रतिपाधने-विषय (१२) સંબંધી જે જ્ઞાન અપાય છે તેના પ્રત્યેની હેતુતા તે કર વગેરેની ચેષ્ટાઓમાં પણ આવે છે, કારણ કે પ્રતિપાદ્ય પુરુષ (સાંભનાર) તેમની ચેષ્ટાઓ વડે ५५ पाप्याथ ने सभ9 श छे. तेथी “समयव्यतिक्रान्ते सति भाषिता भाषा भाषा प्रत्ययोत्पादकत्वात् " ते तु वगेरेनी यष्टासामा ५५ साक्ष्यो गये। હોવાથી ત્યાં ભાષાપણાના અભાવે અગ્નિકાન્તિક હેતુ થઈ જાય છે. તથા અભાષકની ભાષાને ભાષા કહેવી તે પણ સંગત નથી. કારણ કે જે આ જાતની માન્યતાને સ્વીકારવામાં આવે તે સિદ્ધ છે અને અચેતન પદાર્થમાં પણ ભાષાની પ્રાપ્તિ થવાને પ્રસંગ ઉદ્ભવે છે. એ જ રીતે ક્રિયા પણ વર્તમાનકા म युक्त छ. से. आशयथा सूत्रधरे ४ह्यु छ ?-" पुवि किरिया अदुकरवा " पूणे ४२वामां आवेदी या मना तु३५ यती नथी, “ जहा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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