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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७० १० सू० २ स्वमतस्वरूपनिरूपणम् ४०५ यूथिकालापकव्याख्यायां द्रष्टव्या । चतुणी परमाणूनाम् स्नेहकायबलात् संयोगे स्कन्धाकारो भवति, द्विधा विभागे कृते सति एकत्रैकः परमाणुरवस्थितो भवति, अपरभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धस्तिष्ठति । 'पंचपरमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति' पंच परमाणुपुद्गला एकतः संहन्यन्ते 'एगयओ साहणित्ता खंधत्ताए कज्जति' एकतः संहत्य स्कंधतया क्रियन्ते भवन्तीत्यर्थः, पञ्च परमाणुपुद्गला एकैकश:परस्परं संमिलिता भवन्ति मिलित्वा च स्कन्धाकारेण-परिणता भवन्तीत्यर्थः । स्कन्धविषये उत्तरयति-'खंधे वि य णं से असासए' स्कन्धोऽपि च खलु सः अशाश्वतः स च स्कन्धो नैकान्ततो नित्य अपि तु अनित्यः, उत्पत्ति विनाशस्य अन्ययूथिकालाप की लिखी जा चुकी व्याख्या में लिखी जा चुकी है। अतः वहां से इसे देख लेना चाहिये । चार परमाणुओं का स्नेहकाय के बल से संयोग होने पर स्कन्धाकार होता है। इसका जब विभाग करते हैं तो वे दो प्रकार से होते हैं एक प्रकार के विभाग में केवल एक परमाणु अवस्थित रहता है और दूसरे प्रकार के विभाग में त्रिप्रदेशी स्कन्ध रहता है। (पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साहणति ) पांच परमाणु पुद्गलों का स्नेहकाय के बल से संयोग होने पर स्कन्धाकार होता है। (एगयओ साहणित्ता खंधत्ताए कजंति ) यही बात इस पाठ द्वारा प्रकट की गई है । तात्पर्य कहने का यह है कि पांच परमाणु पुगल एक २ कर आपस में मिल जाते हैं और मिलकर वे स्कन्धाकार से परिणत हो जाते हैं । (खंधे वि य णं से असासए ) परमाणुओं के आपस में मिलने से जो स्कन्ध उत्पन्न होता है वह परमाणुओं की तरह एकान्त नित्य તેનું વર્ણન અન્યમૂથિકાલાપની વ્યાખ્યામાં આપવામાં આવ્યું છે તે ત્યાંથી સમજી લેવું, ચાર પરમાણુઓના નેહકાયને કારણે સંઘાત થવાથી તેઓ એક સ્કંધ રૂપે પરિણમે છે. જ્યારે તેમના વિભાગ કરવામાં આવે છે ત્યારે બે રીતે વિભાગ થાય છે, એક પ્રકારના વિભાગમાં ફક્ત એક જ પરમાણુ હોય छ. मने भीan Rना विमा विप्रथा २४५ डाय छे. " पंच परमाणु पोग्गला एगयओ साहणति" पांय ५२मा पुरानो स्नायने २२ सयोग थने तेसो मे २४-५३थे परिभे छ. मे पात “ एगयओ साहणित्ता खंधत्ताए कति" मा सूत्रपा 43 वामां आवे छे. तात्यय से छ કે પાંચ પરમાણુ પુલ એક બીજા સાથે મળી જઈને સ્કન્ધરૂપે પરિણમે છે. " खंधे वि य णं से असासए" ५२मान्य में भी साथे मजी ने સ્કન્ધ બને છે તે સ્કન્ધ પરમાણુઓની જેમ નિત્ય છે તે નથી પણ અનિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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