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________________ ४०६ भगवतीसूत्रे प्रत्यक्षत एवानुभूयमानत्वात् । 'सया समियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य ' सदा समितमुपचीयते चापचीयते च, सदा-सर्वस्मिन् काले समित-नियमितं सत् अनित्यत्वादेव स स्कन्धश्चयापचयौ प्राप्नोतीत्यर्थः। ___यच्चान्यतीर्थिकैरुक्तम्-पंच परमाणुपुद्गलाः संहताः कर्मतया भवन्ति, तदपि न युक्तम् , कर्मणोऽनन्तपरमाणुस्वरूपतयाऽनन्तस्कन्धरूपत्वात् , पंचाणुकस्य नहीं होता है, किन्तु अशाश्वत-अनित्य होता है-सदा रहने वाला नहीं होता है । क्यों कि उसमें उत्पत्ति और विनाश होना ये दो बातें प्रत्यक्ष से ही अनुभूयमान होती हैं । ( सया समियं उवचिजइ य अवचिज्जइ य) वह स्कन्धरूप पर्याय सर्वदा ही-सष समय में ही-नियम से अनि. स्य होने के कारण चय और अपचय को प्राप्त करती रहती है। जो अन्यतीथिकजनों ने ऐसा कहा है कि (पंच परमाणुपुद्गलाः संहताः कर्मतया भवन्ति ) पांच परमाणुपुद्गल संहत होकर-परस्पर में मिलकर-कर्मरूप से परिणत हो जाते हैं सो उनका ऐसा कहना भी युक्त नहीं है । क्यों कि कर्मरूप जो पर्याय है वह अनंत पुद्गल परमाणुओं के संमेलन से निष्पन्न होती है। अतः वह अनंत स्कन्ध रूप होती है। पांच परमाणुओं के संमेलन से जो पर्यायरूप स्कन्ध उत्पन्न होता है वह तो केवल स्कन्ध रूप ही होता है । तथा जीव के स्वभाव को आवरण करने वाला कर्म होता है-अर्थात् कर्म का यह स्वभाव है कि वह आत्मा के ज्ञानादिक गुणों का आवरण करें। ज्ञानादिक गुणों का आवरण करना यही जीव का आवरण करना है । क्यों कि गुणी ત્ય (અશાશ્વત) હોય છે. કારણ કે તેની ઉત્પત્તિ અને વિનાશ પ્રત્યક્ષ अनुभवी ४ाय छ, “सया समिय उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य” ते ४५ પર્યાય સર્વદા-બધા સમયે-નિયમથી જ અનિત્ય હોવાને કારણે ચય અને અપચય પામ્યા કરે છે. अन्य तीर्थ अनु“ पंच परमाणु पुद्गलाः संहताः कर्मतया भवन्ति" पांय ५२॥ પદ્રલેનું સંયોજન થઈને તેઓ કમરૂપે પરિણામે છે” આ કથન પણ યોગ્ય નથી. કારણ કે કર્મરૂપ પર્યાયની ઉત્પત્તિ અનંત પરમાણુ યુદ્ધના સંગ થીજ થાય છે. તેથી તે અનંત સ્કંધરૂપ હોય છે. પાંચ પરમાણુના સંયોગથી જે પર્યાયરૂપ કંધ ઉત્પન્ન થાય છે તે તે કેવળ સ્કંધરૂપ જ હોય છે. કર્મ જીવના સ્વભાવને ઢાંકે છે. એટલેકે કર્મને એ સ્વભાવ હોય છે કે તે આત્માના જ્ઞાનાદિક ગુણને ઢાંકી દે છે. જીવન જ્ઞાનાદિક ગુણોનું આવરણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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