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________________ ४०४ भगवतीस्त्रे कज्जति' ते भिधमाना द्विधाऽपि त्रिधाऽपि क्रियन्ते, संहत्य स्कन्धतया यदा परिणताः परमाणवः विश्लिष्यन्ते तदा ते भागद्वये भागत्रये वाऽवतिष्ठन्ते इत्यर्थः, दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ ' द्विधा क्रियमाणा एकतः परमाणुपुद्गलः एकतो द्विप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, यदा त्रयाणां परमाणूनां स्कन्धतयाऽवस्थितानां विभागो भवति, तदा एकस्मिन् प्रदेशे एकः परमाणुरवस्थितो भवति परस्मिन् प्रदेशे च द्विपदेशिकः स्कन्धस्तिष्ठति न तु सार्धसार्धतया परमाणवोऽवस्थिता भवंतीति भावः । 'तिहा कज्जमाणा तिणि परमाणु पोग्गला भवंति' विधा-क्रियमाणास्त्रयः परमाणु पुद्गला भवन्ति, यदि तेषां त्रिभागो भवेत् तदा त्रयः परमाणव एकैकविभिन्ना एवावतिष्ठेरन्नित्यर्थः । एवं जाव चत्तारि' एवं यावत् चत्वारः, चतुः संख्यकपरमाणुपुद्गलवक्तव्यता चान्यति ) जब वह तीन परमाणु जन्य स्कन्ध विभक्त अवस्थावाला हो जाता है तो उसके भाग दो तरह से भी होते है और तीन तरह से भी होते हैं-तात्पर्य यह है कि स्कन्धरूपसे परिणत हुए वे परमाणु आपसमें विभाग को प्राप्त होते हैं तब वे भागद्वयमें या भागत्रयमें अवस्थित रहते हैं (दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणु पोग्गले,एगयओ दुपएसिए परमाणु पोग्गले) भागद्वय में अवस्थित रहने पर एक भाग में एक परमाणु रहता है और दूसरे भाग में द्विप्रदेशी स्कन्ध रहता है ११-१॥ परमाणु के दो भाग नहीं होते । और जब भागत्रय में वे परमाणुस्थित रहते हैं तब एक २ भाग में एक २ परमाणु स्थित रहता है । तात्पर्य यह है कि यदि उस स्कन्ध के तीन भाग किये जावें तो एक २ भाग में एक २ परमाणु भिन्न २ रूप में रहता है । ( एवं जाव चत्तारि ) इसी प्रकार से चतुःसंख्यक परमाणु पुद्गलों की वक्तव्यता जाननी चाहिये। यह वक्तव्यता માણુ જન્ય સ્કન્ધનું વિભાજન કરવામાં આવે તે તેમના ભાગ બે રીતે પણ પડે છે અને ત્રણ રીતે પણ પડે છે. એટલે કે તેમના બે વિભાગ પણ પડે छ भने र HिOL ५५५ ५४ छ. “दुहा कज्जमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए परमाणुपोग्गले” न्यारे तमना मे विमा ४२वामा मावे છે ત્યારે એક વિભાગ એક પરમાણુ વાળો બને છે અને બીજો વિભાગ દ્વિપ્રદેશી સ્કંધરૂધ બને છે. પરંતુ ૧-૧ પરમાણુના બે ભાગ બનતા નથી. અને જ્યારે તેનું ત્રણ ભાગમાં વિભાજન કરવામાં આવે છે ત્યારે પ્રત્યેક ભાગ એક પરમાણુને બને છે. તાત્પર્ય એ છે કે જે તે સ્કન્ધના ત્રણ ભાગ કરवामां आवेता १२४ लामा मे से ५२मा भिन्न ३ २ छ. “ एवं जाव चत्तारि” से प्रभारी २ ५२मा पुरसानी मामतमा ५५] सभा. શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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