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________________ sheeghr टीका श०१ उ० १० सू० १ अन्ययू थिकमतनिरूपणम् ३८५ 'अकरणओ णं सा दुक्खा नो खलु सा करणओ दुक्खा' अकरणतः खलु सा दुःखा नो खलु करणतो दुःखा, अकरणमाश्रित्य अकुर्वते इत्यर्थः दुःखजनिका क्रिया भवति, अक्रियमाणत्वे दुःखतया तस्याः स्वीकारात् । न तु करणमाश्रित्य कुर्वत इत्यर्थः, दुःखजनिका क्रिया भवति अभ्यासात् ' सेवं वतव्वं सिया' तदेवं वक्तव्यं स्यात्, तदेवं पूर्वोक्तं वस्तु अक्रियमाणत्वे दुःखरूपत्वं क्रियाया न तु कुर्वत इत्येवं रूपं वस्तु वक्तव्यं स्यादिति भावः ! 6 अथान्यतीर्थिकानामेव मतान्तरमाह - ' अकिच्चे ' इत्यादि । 'अकिच्चं दुक्खं' अकृत्यं दुःखम्, अनागतकालापेक्षया जी वैरनिर्वर्तनीयम्, दुःखम् = असातयह प्रश्न है । इसका उत्तर- (अकरणओ णं सा दुक्खा नो खलु सा करओ दुक्खा) नहीं करते हुए को वह दुःख की हेतुभूत होती है-करते हुए को वह दुःख की हेतुभूत नहीं होती है । क्यों कि जबतक वह क्रिया की नहीं जा रही हैं तभीतक वह दुःख जनक है ऐसा स्वीकार किया गया है । करने के समय की जा रही वह क्रिया करते हुए व्यक्ति को अभ्यास होने के कारण दुःखजनक नहीं होती है । (सेवं वक्तव्वं सिया) अक्रियमाणत्व होने पर अर्थात् करने के समय में नहीं की जा रही क्रिया नहीं करने वाले को दुःख की हेतु होती है, और करते हुए को वह दुःख रूप नहीं होती है ऐसा कहा जा सकता है । अन्यतीर्थिकजनों की और भी मान्यताएँ हैं जो इस प्रकार से हैं। ( अकिच्चं दुक्खं ) दुःख अकृत्य - क्रिया के विना-होता है । तात्पर्य कहने का यह है कि दुःख-असातरूप - सुखाभावरूप जो प्रतिकूल वेद उत्तर- " अकरणओण' सा दुक्खा नो खलु सा करणओ क्खा " नहीं કરનારને તે દુઃખના હેતુરૂપ થાય છે, કરનારને દુઃખની હેતુરૂપ થતી નથી, કારણ કે જ્યાં સુધી તે ક્રિયા કરવામાં આવતી નથી ત્યાં સુધી તે દુઃખજનક છે એ માન્યતા સ્વીકારવામાં આવેલ છે. કરવાને સમયે કરવામાં આવતી ક્રિયા पुरनार व्यक्तिने अभ्यास होवाने अरो दुःमन थती नथी. “सेवं वत्तव्व' सिया " अयिभाणुत्व होय त्यारे भेटले खाने समये नहीं उराती डिया નહી કરનારને તે દુઃખરૂપ થતી નથી એ પ્રમાણે કહી શકાય છે. આ પ્રમાણે અન્યતીથિકાની માન્યતા છે. આ ઉપરાંત ખીજી પણ કેટલીક માન્યતાએ તેમની આ પ્રમાણે છે. કે " अकिच्चं दुक्खं " दुःख अट्टत्य-डिया विना - होय छे. तात्पर्य मे छे દુઃખ; ભવિષ્યકાળની અપેક્ષાએ જીવા વડે અનિષ્પાદ્યાય છે. અહી દુઃખ એટલે અસાતારૂપ-સુખાભાવરૂપ-પ્રતિકૂલ વેદનીય દુઃખ ગ્રહેણુ भ ४९ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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