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भगवतीने दुक्खा' या सा पूर्व क्रिया दुःखा भवति, ' कज्जमाणी किरिया अदुक्खा' क्रियमाणा क्रिया अदुःखा, क्रियमाणा या किया सा न दुःखमयोजिका, 'किरिया समयवीइक्कंतं च णं कड़ा किरिया दुक्खा' क्रियासमयव्यतिक्रान्ते च खलु कुता क्रिया दुःखा, क्रियमाणसमयव्यतिक्रमे सति कृता निष्पादिता क्रिया दुःखप्रयो. जिका भवति, अथवा पूर्वकाले क्रिया दुःखजनिका अनभ्यासात् ,क्रियमाणा क्रिया न दुःखप्रयोजिका अभ्यासात् , किन्तु कृता क्रिया दुःखदा यतः क्रियाकरणानन्तरं पश्चात्तापादिर्भवति परिश्रमादिर्वा जायतेऽतः सा क्रिया दुःखेति या दुःखहेतुर्भवति-'सा किं करणभो दुक्खा अकरणओ दुक्खा' सा किं करणतो दुःखा अकरणतो दुःखा? करणतःकरणमाश्रित्य करणकाले कुर्वत इत्यर्थः सा क्रिया दुःखा अथवा किम् अकरणमाश्रित्याकुर्वत इत्यर्थः, सा क्रिया दुःखेति प्रश्नः, उत्तरयतिकिरिया दुक्खा ) यदि करने के पहिले क्रिया दुःखहेतु होती है, (कज्ज. माणी किरिया अदुक्खा ) तथा वर्तमान में की जा रही क्रिया दुःख हेतु नहीं होती है, (किरियासमयविइकतं गं कडा किरिया दुक्खा) तथा जो क्रिया अपने काल को उल्लंघन कर चुकी वह क्रिया दुःखहेतु होती है। अथवा-अनभ्यास होने के कारण पूर्वकाल में क्रिया दुःख जनक होती है, और अभ्यास हो जाने से वर्तमान काल में वही क्रिया दुःख प्रयोजक नहीं होती है। किन्तु कृत क्रिया दुःखदा होती है क्यों कि क्रिया करने के अनन्तर पश्चात्ताप आदि होता है अथवा परिश्रम आदि होता है । इसलिये वह क्रिया दुःख की हेतुभूत हो जाती है । सो (सा किं करणओ दुक्खा, अकरणओ दुक्खा ) वह क्रिया जो दुःख की हेतु होती है सो करणकाल में करते हुए व्यक्ति को दुःख की हेतुभूत होती है या नहीं करने वाले को दुःख की हेतुभूत होती है । इस प्रकार का दुक्ला " . या पक्षांना या भाडेतु छाय, " काजमाणी किरिया अदु
खा " भने वर्तमानमा ती जिया पतु न डाय, “किरिया समय विइक्कंतण कडा दुक्खा" तथा रे यानी अ ५सार २ गये छे. सेवा કરવામાં આવેલી ક્રિયા દુઃખહેતુ હોય તે ( અભ્યાસ ન હોવાને કારણે પૂર્વ કાળમાં ક્રિયા દુઃખજનક હોય છે, અને અભ્યાસ થઈ ગયા પછી વર્તમાન કાળમાં તેજ ક્રિયા દુઃખ પ્રયોજક થતી નથી. પરંતુ કૃત ક્રિયા દુઃખદાયી હોય છે, કારણ કે ક્રિયા કર્યા બાદ પશ્ચાત્તાપ વગેરે થાય છે, અથવા પરિશ્રમ વગેરે थाय छे. ते २0 ते यामना तु३५ पनी लय छे.) “सा कि कर.
ओ दुक्खा, अकरणओ दुक्खा" ४२९७मा ४२नार व्यतिले मना ३५ હોય છે કે નહીં કરનાર વ્યક્તિને દુઃખની છેતુરૂપ હોય છે?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨