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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० १० स० १ अन्ययूथिकमतनिरूपणम् ३८३ ____ अथ क्रियाविषये निरूपयति--' पुधि' इत्यादि । 'पुब्धि किरिया दुक्खा' पूर्व क्रिया दुःखा, किया कायिकी सा पूर्व करणात्पूर्व यावन्न क्रियते तावदित्यर्थः, दुःखा-दुःखहेतुर्भवति । 'कज्जमाणा किरिया अदुक्खा क्रियमाणा क्रिया अदुःखा, क्रियमाणा करणसमये वर्तमानसमये क्रिया अदुःखा-दुःखहेतुर्न भवति। तथा 'किरिया समयवीइक्कंतं च णं' क्रियासमयव्यतिक्रान्ते सति क्रियायाः करणसमयानन्तरमित्यर्थः, कडा किरिया' कृता सती क्रिया 'दुक्खा' दुःखादुःखहेतुर्भवति । क्रिया हि करणापूर्व पश्चाच्च दुःखहेतुर्भवति किन्तु वर्तमानसमये क्रिया दुःखहेतुर्न भवतीति भावः । शिष्यः पृच्छति-'जा सा पुब्बि किरिया ही श्रोता को अर्थ का बोध होता है। इसलिये बोली जा रही भाषा को भाषा नहीं माना गया है। ___ अब सूत्रकार क्रिया के विषय में निरूपण करते हैं-(पुब्धि किरिया दुश्वा) यहां क्रिया कायिकी ली गई है अतः करने से पहिले -अर्थात् जब तक वह क्रिया करने में नहीं आ रही है तबतक वह क्रिया दुःख-दुःख. हेतु होती है । ( कन्जमाणा किरिया अदुक्खा ) जो क्रिया की जा रही है वह दुःख-दुःख की हेतुरूप नहीं होती है । तथा ( किरिया समयवीइ. कंतं च णं कडा किरिया दुक्खा ) क्रिया के करने का समय जब व्यतिक्रान्त हो जाता है तब-अर्थात् क्रिया करने के समय के अनन्तर की जा चुकी क्रिया दुःख-दुःखहेतु होती है। तात्पर्य कहने का यह है क्रिया करने से पहिले और करने के पश्चात् दुःखहेतु होती है, किन्तु वर्तमान समय में वह क्रिया दुःख हेतु नहीं होती है । शिष्य पूछता है-(जा सा पुब्धि ભાષા નીકળી ચૂક્યા પછી જ શોતાને અને બંધ થાય છે. તેથી જે ભાષા બોલવામાં આવી રહી છે તેને ભાષા ગણતા નથી, હવે સૂત્રકાર કિયાના વિષયમાં નિરૂપણ કરે છે – " पुचि किरिया दुक्खा" मीडिया ५४ 43 4जी या सेवामा આવી છે. જ્યા સુધી ક્ષિા કરવામાં આવી રહી નથી ત્યાં સુધી તે કિયા दुस-पाय छ “ कज्जमाणा किरिया अदुक्खा " २ लिया ४२वामा मावी २डी छे ते दुः५ हुपनी हेतु३५ हाती नथी. तथा “किरिया समय वीइक्कत घण कडा किरिया दुक्खा" या वान। समय च्यारे पसार થઈ જાય છે ત્યારે એટલે કે કિયા કરવાના સમય પછી કરવામાં આવેલી કિયા દુઃખ-દુઃખહેતુ હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ક્રિયા કર્યા પહેલાં અને કર્યા પછી દુ:ખહેતુરૂપ હોય છે પણ વર્તમાન સમયમાં જે ક્રિયા કરવામાં माव ते तुती नथी. Gra पूछे छ-" जा सा पुब्वि किरिया શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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