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भगवतीस्त्रे त्यर्थः, ' भासिया 'भापिता ' भासाचसा भाया भवति । 'सा कि भासओ भासा अभासओ भासा ' सा किं भाषमाणस्य भाषा अभापमाणस्य भाषा, उत्त रयति- अभासओ गं सा भासा' अभाषमाणस्य खलु सा भाषा भवति, भाषणात्पूर्व पश्चाच्च तथावबोधात् , किन्तु 'नो खलु सा भासओ भासा ' नो खलु सा भाषमाणस्य भाषा, भाष्यमाणायास्तस्या वर्तमानत्वातिसूक्ष्मत्वेन भाषावासद्भावात् पदार्थ विषयक ज्ञान होता है-अतः वह भाषा जो कि बोली जा चुकी है भाषा है। (जा सा पुचि भासा भासा, भासिज्जमाणी भाला अभासा, भासासमयवोइकंतं च णं भासिया भासा भासा) यदि बोलने के पहिले भाषा भाषा है, वर्तमान में बोलो जातो भाषा भाषा नहीं है और बोलने में आ चुकी भाषा भाषा है तो यहां ऐसा प्रश्न होता है कि (सा किं भासओ भासा अभासओ भासा) वह भाषा शेलते हुए व्यक्तिकी है कि नहीं बोलते हुए व्यक्ति की है। उत्तर-(अभासओ णं सा भामा वह नहीं बोलते हुए की भाषा है । तात्पर्य यह है कि भाषण से पहिले और भाषण के बाद अर्थ का बोध होने के कारण वह नहीं बोलते की भाषा हैं । (नो खलु सा भासओ भासा ) घोलते हुए व्यक्ति की वह भाषा नहीं है। क्यों कि जो भाषा बोली जा रही है-उसमें भाषात्व स्वीकार नहीं किया गया है। इसका कारण यह है कि उससे श्रोताको अर्थ बोध नहीं होता है। मुख से पूर्णरूप से भाषा के निकल चुकने पर
જ સાંભળનારને પદાર્થ સંબધી જ્ઞાન થાય છે-તે કારણે જે ભાષા બોલાઈ २४ीतेने भाषा उपाय छे. 'जा सा पुद्धि भासा भासा, भासिज्ममाणी भासा अभासा, भासा समयबोइक्कंत च ण भासिया भासा भासा" ने माल्या પહેલાની ભાષાને ભાષા કહેવાતી હોય, વર્તમાનમાં બોલાતી ભાષાને ભાષા કહેવાતી ન હોય, અને બોલવામાં આવી ચૂકેલી ભાષાને ભાષા કહેવામાં भावती डाय तो यो प्रश्न मवे “ सा किं भासओ भासा अभासओ भासा” ते मोसना२ व्यतिनी भाषा छ ॐ नही मासना२ व्यतिनी भाषा छ ? उत्तर- ( अभासआ णं सा भासा) ते नही माखना२नी सा छे. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ભાષણના પહેલાં અને ભાષણની પછી અર્થને माय थवाने ४२णे ते नही मसनारनी भाषा छ." न खलु सा भासओ भासा" मासना२ व्यतिनी ते माया नथी. ४१२० २ भाषा मोसवामा આવી રહી છે તેમાં ભાષાપણાનો સ્વીકાર કરવામાં આવ્યું નથી. તેનું કારણ એ છે કે તેની મારફત શ્રોતાને અર્થને બંધ થતું નથી. મુખમાંથી પૂર્ણરૂપે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨