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________________ ३७० भगवती सूत्रे संहन्यन्ते संहत्य दुःखतया क्रियन्ते, दुःखमपि च खलु तत् शाश्वतं सदा समितमुपचीयते चाऽपचीयते च । पूर्वं भाषा भाषा, भाष्यमाणा भाषा अभाषा, भाषा समयव्यतिक्रान्ता च खलु भाषिता भाषा, या सा पूर्व भाषा भाषा, माध्यमाणा भाषा अभाषा, भाषासमयव्यतिक्रान्ता च खलु भाषिता भाषा, सा किं भाषमाणस्य भाषा, अभाषमाणस्य ? अभाषमाणस्य खलु सा भाषा नो खलु सा भाषइसी तरह से यावत् चार परमाणु पुलों के विषय में जानना चाहिये । ( पंच परमाणुपोग्गला एगओ साहणंति ) पांच परमाणु पुद्गल स्कन्ध रूप से परिणम जाते हैं । ( साहणिज्जा दुक्खत्ताए कज्जति ) और स्कन्धरूप में परिणम करके वे दुःखरूप - कर्मरूप हो जाते हैं । (दुक्खे वि से सासर सया समियं उवचिज्जह य अवचिज्जइ य ) दुक्खरूप वह कर्म सर्वदा शाश्वत रहता है । और अच्छी तरह से वह उपचय और अपचय को प्राप्त करता रहता है । (पुत्रि भासा भासा, भासिज्जमाणी भासा अभासा) बोलने के पहिले भाषा भाषा है । बोलते समय भाषा अभाषा है । (भासासमयविइक्कतं च र्णे भासिया भासा) भाषा के समय को उल्लंघन करने वाली बोली गई ऐसी भाषा भाषा है । (जा सा पुवि भासा भाषा, भासिज्माणी भासा अभासा, भासासमयविज्ञकतं च णं भासिया भासा, सा किं भासओ भासा अभासओ भासा) यदि वह बोलने के पहिले की भाषा भाषा है, बोलते समय की भाषा अभाषा है, और बोलने के समय को उल्लंघन करने वाली ऐसी बोली गई भाषा ( यावत) यार परमाणु युद्धबोना विषयभां पशु समभवु. ( पंच परमाणुपोग्गला एगओ साहूणंति ) पांथ परमाणु युद्ध मे २४ध३ये परिशुभे छे. ( साहणिज्जा दुक्खत्ताए कज्जंति ) भने सुध३ये परिशुभीने तेथेो मइय- ४३५ थ लय छे. ( दुक्खे विणं सेसासए सया खमियं उवचिज्जइ य अवचिज्जइ य ) દુઃખરૂપ તે કમ સદા શાશ્વત રહે છે, અને તે સારી રીતે ઉપચય અને अपथ्य याभ्या पुरे छे. ( पुवि भासा भासा, भासिज्जमाणी भासा अभासा ) मोस्या थडेसां भाषा; भाषा छे. मोती वमते भाषा सभाषा छे. ( भासासमयविक्तं च णं भासिया भासा ) भाषाना सभयनुं दसौंधन हरनारी मोसवामां आवेली भाषा; भाषा छे. ( जा सा पुवि भासा भासा, भासिज्ज - माणी भासा अभासा, भासासमयविइक्कंतं च णं भासिया भासा, सा किं भासआ भासा अभासओ भासा ) ने मोहया पडेसां भाषा; भाषा होय, मोसती वणતી ભાષા; અભાષા હાય અને ખેલવાના સમયનું ઉલ્લં ́ધન કરનારી એવી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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