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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१ उ० १० सू० १ अन्ययूथिकमतनिरूपणम् ३६९ त्रयाणां परमाणुपुद्गलानामस्ति स्नेहकायः तस्मात् त्रयः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते, ते भिद्यमाना द्विधा अपि त्रिधा अपि क्रियते, द्विधा क्रियमाणा एकतो द्वयर्धः परमाणुपुद्गलो भवति, एकतोपि द्वयर्थः परमाणुपुद्गलो भवति, त्रिधा क्रियमाणाः त्रयः परमाणुपुद्गला भवंति, एवं चत्वारः, पञ्च परमाणुपुद्गलाः एकतः माणु पुद्गल एक स्कन्धरूप में परिणमते हैं । (कम्हा ) किस कारण से (तिणिपरमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति) तीन परमाणु पुद्गल एक स्कन्ध में परिणमते हैं (तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि तिणेहकाए) तो इसका उत्तर यह है कि उन तीन परमाणु पुद्गलों में स्नेहकाय होता है। (तम्हा तिणि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति) इसलिये तीन परमाणु पुद्गल स्कन्ध रूप में परिणम जाते हैं । (ते भिज्जमाणा दुहा वि, तिहा वि कज्जति ) यदि इन तीन परमाणुओं के भाग किये जावे तो उनके दो भाग भी हो सकते हैं और तीन भाग भी हो सकते हैं। (दुहा कज्जमाणा एगयओ दिवढे परमाणुपोग्गले भवइ, एगयओ वि दिवड़े परमाणुपोग्गले भवइ) जब इनके दो भाग किये जावें तो वे देढ १॥ -१॥ देढ के दो होते हैं-अर्थात् १॥ परमाणु का एक भाग और ॥ परमाणु का दूसरा भाग। (तिहा कज्जमाणा तिण्णि परमाणुपोग्गला भवंति) यदि उन परमाणु पुद्गलों के जो तीन भाग किये जायें तो तीन परमाणु पुद्गल अलग २ होकर तीन भाग बन जावेंगे । ( एवं जाव चत्तारि०) त्रण ५२मा पुरयो मे २४५३५ परिभे छे. (कम्हा) या १२थी (तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति) त्रय ५२भाशु पुस ४५ ३थे परिशुभे छ १ ( तिण्ह परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए) ते त्र ५२भार पुरोमा नेडायनेसमाप पाथी ( तम्हा तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ) ते ५२मा पुर। २४५३२ परिणमे छे. (भिज्ज. माणा दुहा वि, तिहा वि कजति) २ ते २४पना विमा ४२वामां आवतो तना विमा ५५ ५७ श छ भने त्र विना ५ ५५ श छ. (दहा कज्जमाणा एगयो दिवड्ढे परमाणुपोग्गले भवइ, एगयओ वि दिवढे परमाणु पोगले भवइ) न्यारे तेना मे मा ४२पामा आवे छे त्यारे त्यारे १-१॥ ના બે ભાગ થાય છે. એટલે કે ૧૫ પરમાણુને એક ભાગ અને ૧૫ પરમાराना मीने माग थाय छे. (तिहा कज्जमाणा सिण्णि परमाणु पोग्गला भवति) જે તેના ત્રણ ભાગ કરવામાં આવે તે ત્રણે પરમાણુ પૂલે જુદા પડીને એક मे४ ५२भावना प्रत्ये४ मा मन छे, (एवं जाव चत्तारि०) से प्रभारी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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