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भगवती सूत्रे
श्रमणो निर्ग्रन्थः किं बध्नाति यावदुपचिणोति, गौतम ! प्रासुकैषणीयं भुञ्जानः श्रमणो निर्ग्रन्थः आयुष्कवर्जाः सप्त कर्मप्रकृतीः दृढबन्धनबद्धाः शिथिलबन्धनबद्धाः प्रकरोति, यथा संवृतः खलु नवरम् आयुष्कं च कर्मस्यात् बध्नाति स्यानो बध्नाति शेषं तथैव यावद् व्यतिव्रजति, तत्केनार्थेन यावत् व्यतिव्रजति, गौतम! मासुदूषित आहार को भोगने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों को गाढबंधन से बांधता है और यावत् संसार में बारंबार घूमता रहता है । (फासुएसणिज्जं णं भंते । भुंजमाणे समणे fariथे कि बंध, जाव उवचिणइ ) हे भदंत ! प्रासुक एषणिय आहार को अपने उपयोग में लाता हुआ श्रमण निर्धन्य क्या बांधता है यावत् वह किसका उपचय करता है ? (गोयमा ! फासुएसणिज्जं णं भुंजमाणे समणे निरथे आउयवज्जाओ सप्तकम्मपगडीओ घणियबंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ ) हे गौतम : प्रासुक एषणीय आहार को अपने उपयोग में लाता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ आयु को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों को जिन्हें उसने पहिले गाढ बंधन से बद्ध किया था अब शिथिलबंधन वाली कर देता है ( जहा संबुडेणं ) यह संवृत अनगार की तरह होता है । (नवरं ) विशेषता यह है कि यह ( आउयं च णं कम्मं सिय धइ सिय नो बंधइ) आयुकर्म का कभी बंध करता है और कभी बंध नहीं भी करता है। (सेसं तहेव जाव बीहवयह) अवशिष्ठ
अमृतियांना गाढतर अंध जांघे छे भने ( यावत्) ते संसारभां वारंवार परिभ्रमरे छे. (फासुएस णिज्जं णं भंते ! भुंजमाणे समणे निग्गंथे कि बंध, जाव उवचिणइ ) हे भगवन् ! प्रासु शेषशीय ( सूता ) भाडारना उपयोग हुश्नार श्रम निर्थथ शु जांघे छे ? ( यावत् ) शेनो उपयय १३ छे ? ( यावत् पहथी अहीं "शु रे छे भने शेनो यय उरे छे ? " मा मे प्रश्नो ગ્રહણ કરાયા છે)
( गोयमा फासुएसणिज्जं णं भुंजमाणे समणे निग्र्गथे आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ धणिय व धणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ ) हे गौतम ! પ્રાસુક એષણીય આહારના ઉપયોગ કરનાર શ્રમણ નિગ્રંથ, આયુષ્ય કમ સિવાયની સાત ક`પ્રકૃતિયાને પડેલાં તેણે ગાઢ અંધનથી ખાધી હતી તેમને शिथिस बंधनवाजी उरी नाथे छे. ( जहा संबुडेण ) ते संवृत अगुजारना नेवे! होय छे. ( नवर' ) पशु तेनामां मे विशेषता होय छे ! ( आउयं च र्ण कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बधइ ) ते मायुष्यम्भनो संघ उयारेड जांघे छे अने इचारेऽ नथी मांधतो. ( सेसं तहेव जाब बीइ वयइ ) " ते संसारने पार
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨