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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११० ९ २० ७ आधाकर्मस्वरूपनिरूपणम् ३४१ श्रमणो निर्ग्रन्थ आत्मनो धर्ममतिक्रामति, आत्मनो धर्ममतिक्रामन् पृथिवीकायिक नावकांक्षति, येषामपि च जीवानां शरीराणि आहारमाहरति, तानपि जीवान् नावकांक्षति,तत्तेनार्थेन गौतम एवमुच्यते आधाकम खलु भुञ्जानः श्रमणो निर्ग्रन्थः आयुष्कवर्जाः सप्त कर्मप्रकृतीर्यावत् अनुपर्यटति। प्रासुकैषणीयं खलु भदन्त! भुञानः यह ) यावत् वह संसार में बारंबार घूमता रहता है। (से केणटेणं जाव अणुपरियट्टइ ) हे भदन्त ! इसका क्या कारण है-जो वह यावत् संसारमें बारंबार भ्रमण करतारहता है ? (गोयमा! आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे आयाए धम्मं अइकमह ) हे गौतम ! आधाकर्मदोष से दूषित आहार को भोगने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ अपनी आत्मा के धर्म का उल्लंघन करता है ( आयाए धम्म) अपनी आत्मा के धर्म को (अह. कममाणे ) उल्लंघन करता हुआ वह श्रमण निर्ग्रन्थ (पुढबीकाइयं णावकंखइ) पृथिवीकायिक जीवों की दया नहीं पालता है। (जाव तसकायं णावकंखइ) यावत् वह उसकाय की दया नहीं पालते है । (जेसि पि य णं जीवाणं सरीराई आहारं आहारेइ ) तथा जिन जीवों के शरीरों को वह खाता है( ते वि जीवे नावकंखइ) उन जीवोंकी भी वह दरकार (दया) नहीं करता है । (से तेण?णं गोयमा एवं वुच्चइ) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि (आहाकम्भ ण भुजमाणे समणे निग्गंथे आउयवजाओ सत्तकम्मपगडीओ जाव अणुपरियह ) आधाकर्म दोष से
प्रश्न--(से केणटेण जावअणुपरियहइ) उमापन् ! श२0 ते ससाરમાં પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે?
उत्तर--( गोयमा! आहाकम्म ण भुजमाणे समणे निग्गंथे आयाए धम्म अइक्कमइ) 3 गीतम! आधी मारने अड ४२ना२ श्रम निय पोताना यात्मभy Searन ४२ छे. (आयाए धम्म') पाताना यात्मधमनु ( अइकममाणे) Earन ४२ते. ते श्रम निथ (पुढवीकाइय णावकंखइ) पृथ्वीय वानी या na नथी. (जाव तसकायं णावकखइ) यावत् ते साय पथ तन वानी या ५ पाजत नथी. (जे सिं पि य ण जीवाण' सरीराई आहार आहारेइ) तथा तेरे ७वानां शरीरने माय छे (ते वि जीवे नावकंखइ) ते ७वानी ५ ते ४२४२ ४२तो नथी. ( से तेणद्वेण गोयमा ! एवं घुच्चइ) 3 गौतम ! ते १२ मे छु (आहाकम्म' णे भुजमाणे समणे निग्गंथे आउय घग्जाओ सत्तकम्मपगडीओ जाव अणुपरियइ) આધાક આહાર લેનાર શ્રમણ નિથિ આયુષ્યકર્મ સિવાયની સાત કર્મ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨