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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका उ०१।०९ सू. ५ कालास्यवेषिकपुत्रप्रश्नोत्तरनिरूपणम् ३२७ वन्दित्वा एवं वक्ष्यमाण-प्रकारेण अबादीत्-' एएसिणं भंते ! पयाणं पुब्धि अन्नाणयाए, असवणयाए, अबोहियाए अणभिगमेणं' हे भगवन् ! एतेषां खलु पदानां शब्दानाम् पूर्व प्रथमम् अज्ञानतया अज्ञानो निनिस्तस्य भावः अज्ञानता तया स्वरूपतोऽनुपलम्भात् ज्ञानाभावेन, अश्रवणतया श्रवणाभावेन, अबोधितया अबोधिः महावीरजिनधर्मानवाप्तिः तया औत्पत्तिक्यादिबुद्धयभावेन वा प्रबोधाभावेन, अनभिगमाभावेन विस्तरबोधाभावेन हेतुना ‘अदिवाणं, असुयाणं, अस्सुयाणं, अविन्नायाणं, अब्बोगडाणं, अवोच्छिण्णाणं, अणिज्जूढाणं उवधारिउनसे इस प्रकार कहने लगे-" भंते !" हे भगवन् ! (एएसि णं पयाणं) इन पदों की मैंने ( पुन्धि ) पहिले कभी ( अन्नाणयाए ) अज्ञानता होने के कारण इन पदों के स्वरूप को नहीं जान सकने के कारण, (असवणयाए ) नहीं सुनने के कारण ( अबोहियाए ) महावीर जिन के धर्म की अनवाप्तिरूप अबोधि होने के कारण अथवा औत्पत्ति की आदि बुद्धि के अभाव से प्रबोधाभाव होने के कारण, ( अणभिगमेणं ) तथा विस्तृत बोधाभाव होने के कारण (अद्दिट्टाणं) साक्षात् स्वयं देखा नहीं, (असुयाणं ) दूसरों के मुख से मैंने कभी सुना नहीं, (अस्सुयाणं) दर्शन और नहीं सुनने के कारण अनुभव जन्य संस्कार के अभाव से मैंने इन्हें कभी स्मरण किया नहीं, ( अविनायाणं ) विशिष्ट बोध का इन्हें विषय बनाया ( अव्वोगडाणं ) गुरुजनों को नहीं पूछने से प्रश्नोत्तर पूर्वक इनका विशेषरूप से स्पष्टीकरण किया नहीं, ( अव्वोच्छि. २४.२ ४शन तमाणे स्थविर मताने यु-“भते ! मत ! “ ए ए सि ण पायाण " 240 पहोना प्रने मथ “ पुल्विं" प हि ५५५ " अन्नाणयाए" अज्ञानने ॥२णे (पहोनु स्व३५ नहीं सम शाथी) " असवणयाए” नडी समाथी (२मा ५४२ने। अथ ५i नी पासे नही समाथी ) " अबोहियाए” मडावीर प्रभुना धमनी मप्राति३५ समाधि હોવાને કારણે અથવા ઔત્પત્તિકી આદિ બુદ્ધિને અભાવ હોવાથી, પ્રબંધને ममा जापाने २0, “ अणभिगमेणं" तथा विस्तृत माधना मनाने २थे " अहिट्ठाणं " प्रत्यक्ष३५ यो न तो, “ अस्सुयाणं " मन्यने भुमे ४६ सामन्यो न तो, “ अस्सुयाण " ४शन भने श्रवणुन मलावे अनुमन्य ९४२ न वाथी में तेनु ४६ ५ २भ२५ यु न उतु, “अविन्नायाणं" विशिष्ट माधना विषय तमने नाल्यां न तi, “ अब्बोगडाणं " सदगुरुमान પૂછીને પ્રશ્નોત્તરપૂર્વક કદી પણ તેમનું વિશિષ્ટ સ્પષ્ટીકરણ કર્યું ન હતું, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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