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________________ भगवतीसूत्रे इति पूर्वेण अन्वयः, 'एवं खु णे आया संजमे उवहिते भवइ' एवं खलु तथा सति गर्लान्तरम् नः अस्माकम् आत्मा संयमे उपहितो भवति, संयमोपधावान् भवति संयमरूपफलोत्पादने सन्निहितो भवतीत्यर्थः, आत्मरूपः संयमो वा उपहितः प्राप्तो भवति, ‘एवं खुणे आया संजमे उवचिए भवइ ' एवं खलु अबद्यवस्तु गर्दानन्तरं नः अस्माकम् आत्मा संयमे उपचितः परिपुष्टो भवति, आत्मरूपो वा संयमः उपचितो भवति, 'एवं खु णे आया संजमे उपढ़िए भवइ' एवं खलु न: अस्माकम् आत्मा संयमे उपस्थितो भवति, अत्यन्तस्थिरतयाऽवस्थायी भवति दृढो भवति इत्याशयः, 'एत्थ णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे संबुद्धे थेरे भगवंतं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी ' अत्र खलु स कालास्यवेषिकपुत्रोऽनगारः संबुद्धः सम्यक् प्रबोधवान् , भगवतः स्थविरान् वन्दते, नमस्यति, देती है। ( एवं खुणे आया संजमे उवहिते भवइ ) इस प्रकार होनेपर गर्दा के बाद हमारा आत्मा संयम में उपधावाला हो जाता है-अर्थात् संयमरूप फल के उत्पादन में सन्निहित हो जाता है। अथवा-आत्मारूप संयम उपहित-प्राप्त हो जाता है । ( एवं खुणे आया संजमे उवचिए भवह ) अवद्य (पाप ) वस्तु की गहीं के बाद न:-अस्माकं-हमारा, आया-आत्मा, संयम में उपस्थित हो जाता है-अर्थात् अत्यंतस्थिररूप से उसमें स्थायी-दृढ हो जाता है । इस प्रकार इस विषय में “ से कालासवेसियपुत्त अणगारे)वे कालास्यवेषिकपुत्र अनगार (संबुद्धे) बोधपाये अज्ञान से रहित बने गये अर्थात् संबुद्ध हो गये-तत्तद्विषयक ज्ञान से संपन्न हो गये । (थेरे भगवंते वंदइ गमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता एवं वयासी) संबुद्ध होने के बाद फिर उन्हों ने उन स्थविर भगवंतों को वन्दना की, उन्हें नमस्कार किया। वन्दना और नमस्कार कर फिर वे संजमे उवहिते भवइ " माम मनपाथी ग यो पछी भारी मात्मा सयममा સ્થિરતાવાળે બની જાય છે–એટલે કે સંયમરૂપ ફળના ઉત્પાદનમાં સન્નિહિત थ लय छे. अथवा मात्मा३५ संयम पडित (प्रास) 25 तय छ. " एव खु णे आया संजमे उवचिए भवइ " ( ५।५) नी गौ ४ ५७ અમારો આત્મા સંયમમાં ઉપસ્થિત થઈ જાય છે. એટલે કે અતિશય દઢરૂપે તેમાં સ્થિર થઈ જાય છે આ પ્રકારનાં રવિર ભગવંતોનાં વચને સાંભળીને ‘से कालसवेसियपुत्ते अणगारे " ते सास्यवेषिपुत्र मार “ संबुद्धे" સંબુદ્ધ થઈ ગયા-અજ્ઞાનથી રહિત બની ગયા-તે તે વિષયેના જ્ઞાનથી યુક્ત भनी गया “थेरे भगवंते व'दइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी" समुद्ध થયા પછી તેમણે સ્થવિર ભગતને વંદણું કરી, નમસ્કાર કર્યા. વંદણા નામ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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