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प्रचन्द्रिका टीका श०१७०९०५ कालास्यवेषिकपुत्रप्रश्नोत्तर निरूपणम् ३०७ स्वात्, 'थेरा संजमं न जाणंति ' हे स्थविरा: भवन्तः संयमं न जानन्ति, तस्यात्यन्तदुष्करत्वात्, 'थेरा संजमस्स अहं न जाणंति ' हे स्थविरा: । भवन्तः संयमस्य अर्थ न जानन्ति तस्य दुर्विज्ञेयत्वात् 'थेरा संवरं न जाणंति ' हे स्थविरा: । भवन्तः संवरं न जानन्ति तदाराधनस्य दुःसाध्यत्वात्, 'थेरा संवरस्स अहं न जाणंति ' हे स्थविरा: । भवन्तः संवरस्य अर्थ न जानन्ति तदाराधनविधेः दुर्ज्ञेय - स्वात्, 'थेरा विवेगं न जाणंति ' हे स्थविरा: । भवन्तो विवेकं न जानन्ति, तत्स्वरूपस्य दुर्विज्ञेयत्वात्, 'थेरा विवेगस्स अहं न जाणंति ' हे स्थविराः। भवन्तो विवेकस्य अर्थ न जानन्ति तस्यात्यन्तसूक्ष्मत्वात्, 'थेरा विउसग्गं न जाणंति '
प्रयाजन है इस बात को भी नहीं जानते हैं। क्योंकि प्रत्याख्यान का प्रयोजन अत्यंत गूढ है । ( थेरा संजमं न जाणंति ) हे स्थविरो! आप संयम को भी नहीं जानते हैं। क्यों कि वह संयम अत्यन्त दुष्कर है । ( थेरा संजमस्स अहं न जाणंति ) हे स्थविरो ! आप संयम का क्या प्रयोजन है - इसे भी नहीं जानते हैं क्यों कि संयम का प्रयोजन बड़ी मुश्किल से समझ में आवे ऐसा है । ( थेरा संवरं न जाणंति ) हे स्थविरो! आप संवर को नहीं जानते हैं क्यों कि संयम की आराधना अत्यन्त दुःसाध्य है - सब इसकी आराधना कर सकें- ऐसी नहीं है । ( थेरा संवरस्स अहं न जाणंति ) हे स्थविरो ! आप संबर के अर्थ को नहीं जानते हैं क्यों कि उसके आराधना की विधि दुर्विज्ञेय है । (थेरा विवेगं न जाणंति) हे स्थविरो ! आप विवेक को नहीं जानते हैं क्यो कि विवेक का स्वरूप दुर्विज्ञेय है । ( थेरा विवेगस्स अहं न जाणंति )
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अरणु } प्रत्याख्याननुं प्रयान्न अत्यंत गूढ-गहुन छे. “ थेरा संजमं न जाणंति " હૈ સ્થવિરો ! તમે સયમને પણ સમજતા નથી, કારણ કે સંયમ પાળવાનું अर्थ यति दुष्डर छे. " थेरा संजमस्स अट्ठे न जाणंति " हे स्थविरो ! सयभनुं શુ' પ્રત્યેાજન છે તે પણ તમે જાણતા નથી, કારણ કે સંયમનું પ્રયાજન સમभवानुं अर्थ अत्यंत भुश्डेस छे. " थेरा संवर न जाणंति " हे स्थविरो ! तभे સવરને જાણતા નથી. કારણ કે સવરની આરાધના કરવાનું કાર્ય અતિ દુષ્કર छे. मघा बोओ तेनी आराधना उरी शता नथी. " थेरा संवरस्स अठ्ठे न जाणति " हे स्थविरो ! तभे सवरनुं शु प्रयोजन छे ते पशु भजुता नथी, કારણ तेना यशघतनी विधि हुर्विज्ञेय छे. " थेरा विवेगं न जाणति " કે સ્થવિરો ! તમે વિવેકને સમજતા નથી, કારણ કે તેનું સ્વરૂપ દુર્વિજ્ઞય " थेरा विवेगस्स अट्ठ न जाण ंति " हे स्थविशे! तमे विवेऽनुं प्रयोजन यागु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨