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________________ ३०६ भगवतीसूत्रे एव प्रदेशे स्थविराः भगवन्तः आसन् तेनैव तस्मिन्नेव प्रदेशे उपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी' उपागत्य स्थविरान भगवतः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् 'थेरा सामाइयं न जाणंति' हे स्थविराः! भवन्तः सामायिकं न जानन्ति, तस्यात्यन्तसूक्ष्मगूढार्थतया दुर्विज्ञेयत्वात् ' थेरा सामाइयम्स अटुं न जानंति' हे स्थविराः ! भवन्तः सामायिकस्य अर्थ प्रयोजनं न जानन्ति, तत्मयोंननज्ञानस्य अति दुष्करत्वात् 'थेरा पच्चक्खाणं न जाणंति ' हे स्थविराः ! भवन्तः प्रत्याख्यानं न जानन्ति, त्यागधर्मस्य दुर्विज्ञेयत्वात् , थेरा पच्चक्खाणस्स अटुं न जाणंति' हे स्थविराः । भवन्तः प्रत्याख्यानस्य अर्थ प्रयोजनं न जानन्ति, तस्य अत्यन्त गूढवेषी पुत्र अनगार थे। वे जिस प्रदेश में स्थविर भगवन्त विराजमाम थे वहां गये। भगवान महावीर के बहुश्रुत जो शिष्य थे। उनका नाम स्थविर हैं। उनके समीप जाकर उन्हों ने उस स्थविर भगवन्तों से ऐसा -आगे जो विषय कहा जाने वाला है उस रूप से-कहा, वह विषय इस प्रकार से है-(थेरा सामाइयं न जाणंति ) हे स्थविरो। आप सामायिक को नहीं जानते हैं । क्योंकि वह अत्यन्त सूक्ष्म गूढ अर्थ वाला है। इस कारण वह दुर्विज्ञेय है-उसका समझना-जानना-बहुत कठिनाईयों से भरपूर है । (थेरा सामाइयस्स अटुं न जाणंति) हे स्थविरो। आप लोग सामायिक के अर्थ को नहीं जानते हैं। यहां अर्थ का तात्पर्य प्रयोजन का ज्ञान होना अतिदुष्कर हैं । (थेरा पच्चखाणं न जाणंति ) हे स्थविरो! आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते हैं ! क्यों कि प्रत्याख्यान त्यागधर्मरूप होता है । और त्यागधर्म का समझना दुर्विज्ञेय है । (थेरा पच्चक्खाणस्स अटुं न जाणति ) हे स्थविरो! आप प्रत्याख्यान का क्या ભગવત વિરાજમાન હતા ત્યાં ગયા. ભગવાન મહાવીરના જે શિવે બહુશ્રત હતા તેમને સ્થવિર કહેતા. કાલાસ્યવેષીપુત્ર અણગારે તેમની પાસે જઈને તેમને આ પ્રમાણે छद्यु-" थेरा सामाइय न जाणंति" हे स्थविश ! आप सामायिने त નથી. કારણ કે તેનો અર્થ અત્યંત સૂક્ષ્મ અને ગહન છે. દુવિય છે એટલે तने समयानु आय मतिशय भुश्त छ, “थेरा सामाइयस अद्रं न जाणंति" उ स्थविरे। ! तमे सामायिने। २मर्थ ५५] तो नथी. मही " म" मेट “ प्रयोन" सभा: ४।२६५ 3 सामायिन प्रया समन्यु मति दु४२ छ. “ थेरा पञ्चखाण न जाणति” उ स्थवि ! तमे પ્રત્યાખ્યાનને સમજતા નથી કારણ કે પ્રત્યાખ્યાન ત્યાગધર્મરૂપ હોય છે અને त्यागमन समन्व। ५४ २५ति भुश्स छ “थेरा पच्चक्खाणस्स अटुं न जाण ति" ई स्थविरे ! तमे प्रत्याध्याननु प्रयासन ५५ सभाता नथी. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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