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प्रमेयचन्द्रिका टीकाश०१ उ०९ सू०५ कालास्यवेषियपुत्र प्रश्नोत्तरनिरूपणम् ३०३ स्यवेषिकपुत्रोऽनगारः स्थविरान् भगवतो वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् , इच्छामि खलु भदंत ! युष्माकमन्तिके चातुर्यामाद् धर्मात् पंचमहाव्रतिकं सप्रतिक्रमणं धर्ममुपसंपद्य विहर्तुम् । यथासुखं देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्ध कुरु । ततः खलु स कालास्यवेषिकपुत्राऽनगारः स्थविरान् भगवतो वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा चातुर्यामाद् धर्मात् पञ्चमहाव्रतिकं सप्रतिक्रमण
अम्हे वदह ) उस पर जैसा कि हम कहते हैं। (तएणं से कालासवेसिपुत्ते अणगारे) इसके याद कालास्यवेषिक पुत्र अनगार ने (थेरे भगवंते वंदइ, नमसइ) उन स्थविर भगवन्तों की वन्दना की, उन्हें नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता ) वन्दना नमस्कार करके ( एवं वयासी) फिर उन्होंने उनसे ऐसा कहा (भंते ! तुम्भं अंतिए) हे स्थविर भदन्तों! आप लोगों के पास मैं ( चाउज्जामाओ धम्माओ ) चार महाव्रत वाले धर्म को छोड़कर (सप्पडिक्कमणं पंचमहव्वयं धम्म ) प्रतिक्रमणसहित पांचमहाव्रत वाले धर्म को ( उवसम्पज्जित्ता णं विहरित्तए इच्छामि) प्राप्त कर विचरना चाहता हूं। तब स्थविर भ. गवन्तों ने उनसे कहा-(अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह ) आप को जैसे सुख हो हे देवानुप्रिय ! आप वैसा करें । विलम्ब न करें। (तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ) इसके बाद उन कालस्यवेषिक पुत्र अनगार ने (थेरे भगवंते वन्दइ, नमसइ ) स्थविर भगवन्तों को
जहेयं अम्हें वदह ) माय ! अमे ते विष २ ४डी छी तेभा श्रद्धा रामा, माय ! तेनी प्रतीति ४२, हे माय ! तेभा २यि राम. ( तएण से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ) त्या२ ६ ते दास्यवेषिपुत्र मारे (थेरे भगवंते वंदइ नमसइ) ते स्थवि२ सावन्तोने ४री, नमः४।२ ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ता) १४ नम२४॥२ ४ीने ( एवं वयासी ) तभी शथी तमने । प्रमाणे ह्यु-( भंते तुभ अंतिए) स्थविर लगवन्त!! मानी समक्ष (चाउज्जोमाओ धम्ममाओ) या२ मानता भने छाडीने ( सप्पाडक्कमणं पंचमहव्वयं धम्म) प्रतिभा सहितना पाय मानता घमना ( उवसंपज्जित्ताण विहरित्तए इच्छा भ ) स्वी४.२ ४शन विया भाशु छु. त्यारे स्थविर भगवन्ता ४थु-( अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह) હે દેવાનુપ્રિય ! આપને જે રીતે સુખ થાય એ પ્રમાણે કરો–પરંતુ વિલમ્બ ४२३॥ नही. (तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ) त्यारे ते सास्यवषिपुत्र मारे (थेरे भगवंते वंदइ, नमसइ) स्थविर भगवानाने ! ४२री, नभ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨