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भगवतीसूत्रे व्युच्छिन्नानां निदानामधारितानामेतमर्थ श्रद्दधामि, प्रत्येमि, रोचे, एवमेवैतत् तत् यथैतत् यूयं वदत । ततस्ते स्थविरा भगवन्तः कालास्यवेषिकपुत्रमनगारमेवमवादिषुः, श्रद्धेहि आर्य ! रोचस्व आर्य! तद् यथैतद् व्यं वदामः । ततः कालाको (नो सद्दहिए ) श्रद्धा से युक्त नहीं किया ( णो पत्तइए ) प्रतीति (विश्वास ) से युक्त नहीं किया ( णो रोहए ) रुचि से युक्त नहीं किया (इयाणि भंते ) इस समय हे भदंतो! ( जाणणयाए ) इन पदों का ज्ञान हो जाने के कारण (सवणयाए) श्रवण हो जाने के कारण (बोहीए बोध हो जाने के कारण (अभिगमेणं) अभिगम हो जाने के कारण (दि. द्वाणं ) देखे गये (सुयाणं) सुने गये (सुयाणं) स्मरण किये गये (विनायाणं) विज्ञात किये गये ( वोगडाणं) व्याकृत किये गये (वोच्छिन्नाणं) ब्युच्छिन्न किये गये (णिज्जूहाणं ) नियूँढ किये गये ( उवधारियाणं ) अवधारित किये गये ( एतेसिं पयाणं ) इन पदों के (एयम8) इस अर्थ की ( सहहामि ) मैं श्रद्धा करता हूं ( पत्तियामि ) प्रतीति करता हूं (रोएमि ) रुचि करता हूं ( एवमेयं ) यह ऐसा ही है जैसा कि आप कहते हैं । (तएणं) इसके बाद (ते थेरा भगवन्तों ) उन स्थविर भगवन्तों ने (कालासवेसियपुत्तं अणगारं ) कालास्यवेषिक पुत्र अनगार से ( एवं वयासी) ऐसा कहा (सदहाहि अज्जो पत्तियाहि अज्जो, रोएहि अज्जो) हे आर्य! श्रद्धा करो, हे आर्य प्रतीति करो, हे आर्य रुचि करो (से जहेयं सहित ४ नडतो, (णो पत्तइए ) 24॥ २१ मा ५i भने विश्वास न डता, (णो रोइए) रुथि न उता. (इयाणि भंते ! ) 3 पून्य ! ( जाणणयाए) मा पहोनुं ज्ञान थवाने १२णे, (सवणयाए) श्रवण थवाने २, (बोहिए ) माध थवाने रणे, (अभिगमेण) मनिराम (सभा) थाने ४।२0, (दिट्टाण, सुयाण, विनायाण, वोगडाण वोच्छिन्नाण, णिज्जूढाण, उचधारियाण एतेसि पयाण एयम?' सदहामि पत्तियामि रोएमि एवमेयं) ते पह! નાં આ અર્થને જોઈને, સાંભળીને, સ્મરણ કરીને, વિજ્ઞાત કરીને, વ્યાકૃત (પ્રગટ) થવાથી, વ્યછિન્ન થવાથી, નિયંઢ થવાથી, અને અવધારિત કરવાથી તે અર્થમાં હવે મને શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ છે, તે અર્થની મને પ્રતીતિ થઈ છે, તે અર્થ પ્રત્યે મને રુચિ પેદા થઈ છે, આપના કહેવા પ્રમાણે જ એ તમામ Aथ ५२।१२ छ. ( तएण) त्या२ मा (ते थेरा भगवंतो) ते स्थविर लग बतासे ( कालासवेसियपुत्त अणगार) दास्यषि पुत्र २मारने (एवं षयासी) मा प्रमाणे ४थु-( सद्दहाहि अज्जो पत्तियाहि अज्जो, रोएहि अज्जो, से
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨