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भगवतीसूत्रे धर्ममुपसंपद्य खलु विहरति । ततः खलु स कालास्यवेषिकपुत्रोऽनगारो बहूनि वर्षाणि श्रामप्यपर्यायं पालयात, पालयित्वा यस्यार्थ क्रियते नग्नभावो मुण्डभावोऽस्नानकमदंतधावनकमच्छत्रकमनुपानकं भूमिशय्या फलकशय्या काष्ठशय्या
बन्दना की, उन्हें नमस्कार किया ( वन्दित्ता नमंसित्ता ) वन्दना करके, नमस्कार करके, (चाउज्जामाओ धम्माओ) चार महाव्रत वाले धर्म को छोड़कर (सपडिक्कमणं) प्रतिक्रमण सहित (पंच महत्वइयं ) पांच महाव्रत वाले ( धम्मं ) धर्म को (उवसम्पज्जित्ताणं ) प्राप्त कर (विहरइ) विचरने लगे (तएणं से कालासवेलिपुत्ते अगगारे) इसके बाद इन कालास्य वेषिकपुत्रअणगारने (बहूनि वासाणि) बहुत वर्षातक (सामन्न परियागं पाउगइ ) श्रामण्यपर्याय का पालन किया । ( पाउणित्ता ) पालन करके (जस्सट्टाए ) जिस अपने प्रयोजन को सिद्ध करने के निमित्त (नग्गभावे कीरइ ) उन्हों ने नग्नपना लिया ( मुन्डभावे ) मुन्डपना लिया (अण्हा. णयं ) स्नान नहीं करना ऐसा नियम लिया ( अदंतधुवणयं ) दन्तधावन-दांतोंन नहीं की (अच्छत्तयं) छन्त्र नहीं रखा (अणोवाहणथं) पगरखे नहीं पहरे ( भूमिसेज्जा ) भूमि पर शयन किया ( फलहसेज्जा) फलक पर शयन किया (कट्ठसेज्जा) काष्ठ पर शयन किया (केसलोओ) केशों कालुंचन किया (बंभचेर बातो) ब्रह्मचर्य में वास किया (परघरप्पवेसो) २४५ ४ा. (वदित्ता, नमंसित्ता) । नभ२४.२ ४रीने (चाउज्जामाओ धम्माओ) या२ मडवता धर्म ने छोडीन (सपडिक्कमण') प्रतिमा सङितना (पंचमहव्वइयं ) पांय यावतवाणी (धम्म ) धमन ( उवसंपज्जित्ताण) मा.४२ ४शन ( विहरइ) विय२ ग्या. (गणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ) त्या२ माह ते दास्यवित्र ( बहूनि वासाणि) वर्षा सुधा (सामन्न परियागं पाउणइ ) श्रम पर्यायर्नु पासान यु. ( पाउणित्ता) श्रम पर्यायन पासन ४शने (जस्सट्टाए) तेमणे पोताना मात्म४यानी सिद्धि भाट ( नग्गभावे कीरइ ) नता पा२७५ ४२री-खोनी परित्या , ( मुंडभावे ) माथे /31 -शयन युं, ( अण्हाणय) स्नान नहीं ४२वाना नियम यो, (अंतधुवणयं) iत पौवातुं ५५ ४यु, ( अच्छत्तयं ) छत्र रामनु मध ४थु, ( अणोबाहणय) ५मा 2.५९२१! ५५ ४ा, (भूमिसेज्जा) भूमि ५२ शयन ४२५॥ भांडयु, ( फलहसेज्जा ) ३५४ ५२ शयन ४२१भांडयु. (कटुसेज्जा) ४१७४ ५२ शयन ४२१। भांडयु. ( केसलोओ) पानी सोय ४२वा मांज्यो, (बंभचेरवासो) प्राययं पापा His\, (परघरपवेसो) मिक्षा) ५२५२मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨