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भगवतीसूत्रे किं गर्दा संयमः अगर्दा संयमः ? । कालास्यवेषिकपुत्र ! गर्दा संयमो नो अगर्दा संयमः, गर्हापि च खलु सर्व दोषं प्रविनयति, सर्वा बालतां परिज्ञाय, एवं खल्व. स्माकमात्मा संयमे उपहितो भवति, एवं खल्वस्माकमात्मा संयमे उपस्थितो भवति । अत्र खलु स कालास्यवेषिकपुत्रोऽनगारः संबुद्धः स्थविरान् भगवतो इन क्रोधादिकों की निंदा करते हो? तब उन स्थविर भगवन्तों ने काला. स्यवेषिपुत्र से कहा कि ( कोलासवेसिपुत्तः ) हे कालास्यवेषिकपुत्र! (सं जमट्ठाए ) हम लोग जो क्रोधादिकों की निंदा करते हैं वह संयम के लिये करते हैं। ( से भंते ! किं गरहा संजमे अगरहा संजमे ? ) तब कालास्यवेषिकपुत्र ने उन स्थविर भगवंतों से पूछा कि हे भदन्तो! गर्दा (निदा) संयम हैं ? कि अगीं संयम है ? ( कालासवेसिय पुत्त ! गरहा संजमे, णो अगरहा संजमे ) स्थविर भगवन्तों ने तब कहा कि कालास्यवेषिकपुत्र ! गर्दा संयम है, अगर्दा संयम नहीं है । (गरहा वि य णं सव्यं दोसं पविणेइ ) अपि च गर्दा समस्त दोषों को बिलकुल दूर कर देती है, (सव्वं बालियं परिणाए ) समस्त बाल्य-अज्ञान को ज्ञ परिज्ञा से जानकर । अर्थात् गर्दा द्वारा आत्मा ज्ञ परिज्ञा से समस्त अज्ञान जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से दोषों का नाश कर देती है। ( एवं खुणे आया संजमे उवटिए भवइ ) इस तरह से हम लोगों की आत्मा संयम में स्थापित हो जाती है । ( एवं खु णे आया संजमे उवट्ठिए भवइ ) इस तरह से हम लोगों को आत्मा संयम में उपचित हो जाती है। ( एवं ગહ ( ઘણા) કરે છે? ત્યારે તે સ્થવિર ભગવતેએ કાલાસ્યવેષિક પુત્રને
यु- (कालासवेसियपुत्त! ) वास्यवेषि पुत्र! ( संजमद्राए) समे बोध पोरेनी घृष्ण ४ी छीमे ते संयमाने भाट २४ ४ीये छीमे (से भंते ! किं गरहा संजमे अगरहा संजमे ?) त्यारे मास्यवेषित्रे तमने पूछ्यु:
પૂજે ! ગહ ( ગુરુ સાક્ષી એ આત્મનિંદા) સંયમ છે ? કે અગહ સંયમ छ ? ( काल सवेसियपुत्त! गरहा संजमे; णो अगरहा संजमे) ॐ स्य पुत्र! गई सयम छ, म सयम नथी. (गरहा वि य णं सब दोसं पविणेइ ) भने तमाम होषो सहत२ ६२ ४२नारी छे, (सब्ब बालिय परिणाए) तमाम मायने ( अज्ञानने) परिज्ञाथी ताने-टो गड એટલે કે ગુરુસાક્ષી એ સ્વ નિંદા કરીને આત્મા જ્ઞ પરિણાથી અજ્ઞાનને જાણીને प्रत्याभ्यान परिक्षा 43 होषानी नाश २ छ. ( एव खु णे आया संजमे उवट्रिए भवइ ) मा रीते मारे। मात्मा सयममा स्थापित थ य छ. ( एव' खु णे आया संजमे उबढिए भवइ) मा रीते मभा। मात्मा सयममा पथित
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨