________________
प्रमेयचन्द्रिका टीकाअ०५ उ०९सू०५ कालास्यवेषिकपुत्रप्रश्नोत्तरनिरूपणम् २९९ मार्याः!व्युत्सर्गः,को भवतामार्या! व्युत्सर्गस्यार्थः। ततस्ते स्थविरा भगवंतः कालास्य वेषिकपुत्रमनगारमेवमवादिषुः, आत्मा-अस्माकमार्य! सामायिकम् , आत्मा अस्माकमार्य ! सामायिकस्यार्थः, यावद् व्युत्सर्गस्यार्थः । ततः स कालास्यवेषिकपुत्रोनगारः स्थविरान् भगवत एवमवादीत् , यदि भवतामार्याः ! आत्मा सामायिकम् , आत्मा सामायिकस्यार्थ एवं यावत् आत्मा व्युत्सर्गस्यार्थः, अपहृत्य क्रोधमानमा. यालोमान् किमर्थमार्याः गर्हत। कालास्यवेषिकपुत्र ! संयमार्थतया । तद् भदंत ! क्या अर्थ है ? ( जाव किं भे विउसंग्गस्स अट्टे ) यावत् व्युत्सर्ग का क्या अर्थ है ? (तएणं थेरा भगवन्तो कालासवेसिकपुत्त अणगारं एवं वयासी ) इसके बाद उन स्थविर भगवंतों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार से कहा । ( आयाणे अज्जो ! समाइए, आयाणे अज्जो सामाइयस्स अट्टे जाव विउसग्गस्स अट्ठे ) हे आयें ! हमारा आत्मा सामायिक है । हे आर्य ! हमारा आत्मा सामायिक का अर्थ है ! (जाव विउसग्गस्स अटे) यावत् व्युत्सर्ग का अर्थ है (तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवन्ते एवं बयासी) तब उन कालास्यवेषिक पुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवन्तो से ऐसा कहा-(जह मे अज्जो आया सामाइए, आया सामाइयस्म अढे ) हे आर्यो ! यदि आप लोगो की आत्मा सामायिक है, आत्मा सामायिक का अर्थ है (एवं जाव आया विउसग्गस्स अट्टे ) इसी तरह से यावत् आत्मा व्युत्सर्ग का अर्थ है, तो (कोहमाणमायालोभे ) क्रोध, मान, माया और लोभ इनको ( अवहट्टु छोड़कर (किं अहं) किसलिये (अज्जो) हे आयो ! तुम लोग (गरहह) भे विउसगस्स अट्टे) यावत् व्युत्सना ।। अथ छ ? (मडी ५ "यावत" ५४थी पूछित सूत्र५४ प ४२व। ) ( तएण थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्त अणगार एवं क्यासी) त्यारे ते स्थविर मावन्ताय सास्यवषिपुत्रन । प्रमाणे ह्यु-( अयाणे अज्जो ! सामाइए, आयाणे अज्जो सामाइयस्स अट्टे जाव विउग्गस्स अट्रे) माय ! मारे। मात्मा से सामाथि छ, मन माय ! अभाव। मामा ४ सामायिन। म छ, “ यावत् ” व्युत्सना अर्थ छ ( तएणं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे भगवते एव वयासी) त्यात सास्यवेषिपुत्र २मारे ते स्थवि२ सावन्तोने 20 प्रभारी अधु-(जइ भे अज्जो आया सामा इयस्स अटे एवं जाव आया विउसग्गस्स अटूठे ) मार्यो ! જે આપને આત્મા સામાયિક હોય અને આપને આત્મા સામાયિકનો અર્થ डाय, “ यावत् ” मायने। २त्म! व्युत्ने अर्थ य त ( कोहमाण माया लोभे) औध, भान, माया मने सोलना (अवह?) त्याग रीने जी (किं अ) । भाट (अज्जो) 3 मार्यो ! (गरहह) तमे तेमनी (ओघाहिनी)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨