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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३०९ सू०५ कालास्यवेषिकपुत्रप्रश्नोत्तरनिरूपणम् २९३ जाव विहरइ' इति भगवान् गौतमो यावद्विहरति, भगवन्तं वन्दित्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयमानो विहरतिस्मेति भावः ॥ सू० ४ ।।
॥ इत्यन्ययूथिकमते प्रश्नोत्तरनिरूपणप्रकरणम् ।। ___आर्यकालास्यवेपिपुत्रानगारप्रकरणम्अन्ययूथिकप्रस्तावादेवेदं सूत्रमाह- 'तेणं कालेणं ' इत्यादि ।
मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिजे कालासवेसियपुत्ते णामं अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी-थेरा सामाइयं न जाणंति, थेरा सामाइयस्त अटुं न जाणंति, थेरा पच्चक्खाणं न जाणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अटुं न जाणंति, नमस्कार कर वहां से संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर आ गये। यहां उत्तरसूत्र में जो “अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जावं परूवेमि" यावत् पद आया है उससे " एवं भासेमि एवं पनवेमि" इन दो क्रियापदों का संग्रह किया गया है। सामान्यरूप से कथन करना इसका नाम आख्या है। विशेषरूप से कथन करना इसका नाम भाष ग है। हेतु दृष्टान्त देकर अपने अभिमत विषय का समर्थन करना इसका नाम प्रज्ञापना है । भेदों के कथन से जो विषय निरूपित किया जाता है उसका नाम प्ररूपणा है ॥ सू-४ ॥ इस प्रकार से अन्ययूथिकमत में प्रश्नोत्तरनिरूपण
करने वाला प्रकरण समाप्त हुआ ॥ વંદણ નમસ્કાર કરીને સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા पाताने स्थाने गया सही उत्तर सूत्रमा “ अह पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जाव परूवेमि" 'जाव' (यावत् ) ५६ माव्युछे तेनी म॥२५“एवं भासेमि, एव पन्नवेमि" में लियापहोनी समावेश राय छे. विशेष३] કથન કરવું તેનું નામ “ભાષણ” છે. હેતુ દષ્ટાન્ત વડે પોતાના મતનું પ્રતિપાદન કરવું તેનું નામ “પ્રજ્ઞાપના” છે ભેદના કથન વડે વિષયનું જે નિરૂપણ ४२वामा मा छ तेने “ प्र३५॥” ४ छ” ॥ सू०४ ॥
| અન્યતીથિક મત વિષયક પ્રશ્નોત્તર સમાપ્ત .
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨