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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७० ९ सू०२ गुरुत्वादिस्वरूपनिरूपणम् २६५ गुरुलघुका वा अगुशलघुका वेति प्रश्नः । उत्तरति भगवान्-'गोयमे' त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो गुरुरा' नो गुरुकाः ‘नो लहुया' नो लघुकाः किन्तु 'गुरुलहुया वि' गुरुलघुका अपि ' अगुरुलहुया वि ' अगुरुलघुका अपि, हे गौतम ! नारका नो गुरुका न वा लघुकाः अपि तु गुरुलघुकास्तधा अगुरुलघुकाश्च-भवन्तीति ' से केणटेणं' तत्केनार्थेन ? उत्तरयति भगवान-गोयमा' इत्यादि । ‘गोयमा' हे गौतम ! 'वेउब्बिय तेयाई पडुच्च' वैक्रियतैजसे शरीरे प्रतीत्य अधिकृत्य ' णो गुरुया णो लहुया गुरुय लहुया' नो गुरुका नो लघुका गुरुकलघुका नो अगुरुलघुकाः, नारका वैक्रियतैजसशरीरे प्रतीत्य गुरुकलघुका एव यतो वैक्रियतैजसशरीरे वैक्रियतैजसवर्गणानिष्पादिते, वैक्रिय " लघु और गुरुलघु " इन पदों का ग्रहण किया गया है । इस तरह से हे भदन्त ! नैरयिक जीव क्या गुरु हैं ? लघु हैं ? या गुरु लघु रूप हैं अथवा अगुरुलघुरूप हैं ? यह प्रश्न बन जाता है । (गोयमा !) हे गौतम ! नारक जीव ( नो गुरुया, नो लहुया ) न गुरु हैं, न लघु हैं किन्तु (गुरु यलहुया वि अगुरुलहुया वि) गुरुलघु भो हैं और अगुरुलघु भी हैं। ( से केणटेणं ? ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नारक जीव न लघु हैं न गुरु हैं किन्तु गुरुलघु भी हैं और अगुरुलघु भी हैं ? ( गोयमा ! वेउब्विय-तेयाइं पड्डुच्च णो गुरुया, णो लहुया, गुरुयलहुया ) हे गौतम ! वैक्रियशरीर तैजस शरीर इन दो शरीरों की अपेक्षा करके नारक जीव न गुरु हैं, न लघु हैं किन्तु गुरुलघु हैं। अगुरुलघु नहीं है । तात्पर्य यह है कि नारक जीवों के तैजस शरीर कार्मणशरीर तथा वैक्रियशरीर ये ३ तीन शरीर होते हैं । सो तैजस एवं वैक्रिय शरीर तैजस और वैक्रिय वर्गणाओं से निष्पादित होते है। और ये तैजस डाय छ ? ( गोयमा !) हे गौतम ! १२४ । ( नो गुरुया, नो लया) शुरु ५५ नथी सधु ५ नथी, ५२न्तु (गुरुयल हुया वि अगुरुयलहुया वि) गुरुवधु पय हाय छे भने अशुरुमधु ५५ हाय छ ? (से केणट्रेण०') ભગવન! આપ શા માટે એવું કહે છે કે નારક ગુરુ પણ નથી, લઘુ पण नथी. ५२न्तु गु२.६धु छ भने म गुरुसधु ५४ छ ? (गोयमा ! वेउव्विय -तेयाइ पडुच्च णो गुरुया, णो लहुया. गुरुयलहुया ) 3 गौतम ! वैठिय भने તેજસ શરીરની અપેક્ષાએ નારક જી ગુરુ પણ નથી, લઘુ પણ નથી, અગુરુલઘુ પણ નથી. પરંતુ ગુરુલઘુ છે. તાત્પર્ય એ છે કે નારક જીવોને તેજસ કાર્પણ શરીર અને વૈકિય શરીર એ ત્રણ શરીર હોય છે. તેજસ અને વેકિય શરીરનું નિર્માણ તેજસ અને વૈકિય વગણાઓથી થાય છે. અને તે તેજસ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨