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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११० ९ सू० २ गुरुत्वादिस्वरूपनिरूपणम् २६३ एवमेव ‘सत्तमे घनोदही' सप्तमो घनोदधिः, सप्तमो घनोदधिरपि धनवातवद्व्याख्येयः, 'सत्तमा पुढवी' सप्तमी पृथिवीः, सप्तमी पृथिव्यपि घनदातवदेव व्याख्येया। ' उववासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे उवासंतरे' अवकाशान्तराणि सर्वाणि यथा सप्तममवकाशान्तरम् , सर्वेषामवकाशान्तराणां वक्तव्यता सप्तमावकाशान्तरवद् अगुरुलघुकरूपा विज्ञेया । ' सेसा जहा तणुवाए' शेषाः द्वीपादयो यथा तनुवातः, कथम् ? ' एवं गुरुलहुए ' एवं गुरुकलघुकः, यथा तनुवातः गुरुकलघुकरूपेण तृतीयपदेन कथितस्तथा द्वीपाः, सागराः, वर्षाण्यपि गुरुकलघुक रूपेण तृतीयपदेन व्याख्येयानि । संग्रहगाथार्द्धमाह___ ओवास बाय-घण-उदही-पुढवी-दीवा य सागरा-वासा"। छाया-अवकाशः वातो घनोदधिः पृथिवी द्वीपाश्च सागरा वर्षाणि ।
तनुवातविषये यथा कथितं तथैव अवकाशवातघनोदधिपृथिवीद्वीपसागर है किन्तु गुरुलघु है उसी प्रकार से सातमा धनवात भी न गुरु है, न लघु है, और न अगुरुलघु है, किन्तु गुरुलघु है । इसी तरह से सातमा घनोदधि भी घनवात की तरह है। सातमी पृथिवी भी घनवात की तरह ही है । तथा समस्त अवकाशान्तर संबंधी वक्तव्यता सप्तम अव. काशान्तर की तरह ही जाननी चाहिये । ( सेसा जहा तणुवाए) शेष द्वीपादिक तनुवात की तरह गुरुलघु तृतीय पद से कहे गये हैं। यही बात ( एवं गुरुयल हुए ) इस पाठ द्वारा कही गई है । अर्थात् जितने भी द्वीप हैं । सागर हैं, और वर्ष हैं वे सब गुरुलघुरूप तृतीयपद से व्याख्यात हुए हैं । इस विषय में गाथार्द्ध इस प्रकार से है-"ओवासवाय-घण उदही-पुढवी-दीवा य सागरा वासा" तनुवात के विषय में जैसा कहा गया है-उसी प्रकार से अवकाश वात घनोदधि-अर्थात्
સાતમું ઘનવાત પણ ગુરુ નથી, લઘુ નથી, અગુરુલઘુ નથી પણ ગુરુલઘુ છે. એ જ પ્રમાણે સાતમા ઘોદધિ અને સાતમી પૃથ્વી વિષેનું વક્તવ્ય પણ ઘનવાત પ્રમાણે જ સમજવું. તથા તમામ અવકાશાન્તર સંબંધી વક્તવ્ય સાતમા અવકાશાन्तर प्रभारी सम४. (सेसा जहा तणुवाए) isीन पाहिD १४तव्य तनुवात પ્રમાણે સમજવું, એટલે કે તેમને ગુરુલઘુ કહ્યા છે એમ સમજવું, એ જ વાત ( एवं गुरुयलहुए) सूत्रया १3 मतावाम मावी छ. मेटले मधाबापाने સાગરોને અને વર્ષોને ગુરુલઘુરૂપ ત્રીજા પદથી વર્ણવ્યા છે-એટલે કે તેઓ शुरुमधु छे. या विषयमा २प्रमाणे याद्ध छ-" ओवास, वाय, घणउदहीपुढबी, दीवाय सागरावासा" तनुपातनी मातभा २ ४थन थयुं छे ते ४थन
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨