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________________ २६२ भगवतीसूत्रे ___ उत्तरयति भगवान्-'गोयमे' त्यादि, 'गोयमा ' हे गौतम ! 'णो गुरुए नो गुरुकं सप्तममवकाशान्तरम् ‘णो लहुए ' नो लघुकम् ‘णो गुरुयलहुए' नो गुरुकलघुकम् ' अगुरुयलहुए ' अगुरुकलघुकम् , ' सत्तमे णं भंते ' सप्तमः खलु भदन्त ! 'तणुवाए ' तनुवातः 'कि गुरुए लहुए गुरुयलहुए-अगुरुयलहुए' किं गुरुकः लघुकः गुरुकलघुकोऽगुरुलघुकः ? सप्तमे तनुवाते गुरुत्वं लघुत्वं गुरुकलघुत्वमगुरुलघुत्वं वेति प्रश्नः । उत्तरयति भगवान्-'गोयमे' त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! णो गुरुए 'नो गुरुकः ‘णो लहुए' नो लघुकः, किन्तु 'गुरुयलहुए' गुरुकलघुकः ‘णो अगुरुयलहुए' नो अगुरुलघुकः, हे गौतम ! योऽसौ सप्तमस्तनुवातः स नो गुरुः नो लघुः किन्तु गुरुलघुको न वा अगुरुलघुकः इत्येवं ज्ञातव्य इति । एवमेव सप्तमा धनवातादयोपि ज्ञातव्या इत्याशयेनाह–'एवं सत्तमे घण वाए ' इत्यादि । ' एवं सत्तमे घणवाए ' एवं सप्तमो घनवातः, यथा सप्तमस्तनुवातो न गुरुर्न वा लघुः किन्नु गुरुलघुको न अगुरुलघुस्तथा सप्तमो घनवातोऽपि न गुरु ने वा लघुकोऽपि तु गुरुकलघुको न अगुरुकलघुक इति भावः । गौतमस्वामीकृत पूर्वप्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि(गोयमा ! नो गुरुए, णो लहुय, णो गरुयलहुए, गरुलहुए) हे गौतम ! सातवों जो अवकाशान्तर है वह न गुरुक है, न लघुक है, न गुरुलघुक है । ( सत्तमे णं भंते ! तणुवाए किं गुरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगुरुयलहुए ) हे भदन्त ! सातवां जो तनुवात है वह क्या गुरु है, लघु है, गुरुकलघु है या अगुरुलघु है ! (गोयमा ! णो गुरुए, णो लहए, गुरुयलहुए, णो अगुरुलहुए ) हे गौतम ! सातवां जो तनुवात है वह न गुरु है, न लघु है और न अगुरुलघु है किन्तु गुरुलघु है । (एवं सत्तमे घणचाए, सत्तमे घणोदही, सत्तमा पुढवी, उवासंतराइ सव्वाइं जहा सत्तम उवासंतरे ) जैसे सातमा तनुवात न गुरु है न लघु है और न अगुरुलघु હવે ગૌતમસ્વામીએ પૂછેલા પ્રશ્નને મહાવીર પ્રભુ જે જવાબ આપે છે ते सूत्रा२ ५४८ ४२ छ-(गोयमा ! नो गुरुए, णो लहुए, णो गुरुयलहुए, अगुरुयलहए ) ॐ गौतम ! सातभु म शान्त२ शुरु नथी. सधु नथी, गुरुसधु नथी, पण अशुरुमधु छ. ( सत्तमेणं भंते ! सणुवाए कि गुरुए, लहुए, गुरुयलहुए, अगुरुयलहुए ) 3 भगवन् ! सातभुं तनुपात सधु छ, शुरु छ ? शुरुसधु छ, है मगुरुसधु छ ? ( गोयमा ! णो गुरुए, णो लहुए, गुरुयल हुए, णो अगुरुयल हुए) गौतम ! सातभुतनुपात शुरु ५५ नथी, सधु ५५ नथी, शुरुमधु ५५५ नथी, ५२न्तु शुरुमधु छ. ( एवं सत्तमे घणवाए, सत्तमे घणोदही, सत्तमा पुढवी, उवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे उवासंतरे )२वी रीत सात તનુવાત ગુરુ નથી, લઘુ નથી, અગુરુલઘુનથી પણુ ગુરુલઘુ છે એ જ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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