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________________ भगवतीसूत्रे च प्रचुरकालावस्थितिकं संसारं कुर्वन्ति, ' एवं हस्सी करेंति ' एवं इस्वीकुर्वन्ति, संसारस्याल्पकालावस्थायित्वं कुर्वन्ति, ' एवं अणुपरियटुंति' एवमनुपर्यटन्ति, पौन्यः पुन्येन भ्रमन्ति संसारे। ' एवं वीइ वयंति' एवं व्यतिव्रजन्ति, व्यति क्रामन्ति संसारं समुल्लयन्तीति । अथोपसंहरनाह-'पसत्थाचत्तारि' प्रशस्तानि चत्वारि, गुरुत्वलघुत्वादिषु अष्टसु मध्ये चत्वारि-चतुः संख्यकानि लघुलपरीतत्व-हस्वत्व-व्यतिव्रजनानि प्रशस्तानि-प्रशंसनीयानि मोक्षकारणत्वात् ' अप्पसस्थचत्तारि ' अप्रशस्तानि चत्वारि, गुरुत्वाकुलत्व-दीर्घत्वपर्यटनानि अप्रशस्तानि, तेषां संसारकारणत्वात् । यद्यप्येतानि सर्वाणि संसारसंबद्धान्येव तथापि चत्वारि संसार को इतनी बड़ी भारी लंबी स्थितिवाला वे इन्ही प्राणातिपात आदि १८ अठारह पापों के सेवन करने से ही बनाते हैं। (एवं हस्सी करेंति) तथा प्राणातिपात आदि १८ अठारह पाप स्थानों से निवृत्त होने से वे संसार को अल्पकालावस्थायी बना लेते हैं। (एवं अणुपरियटृति) इसी कारण सेअर्थात् उन्हों ने अपने संसार को बहुत अधिक लंबी स्थितिवाला बना लिया है-इसी निमित्त से-वे संसार में बार २ भ्रमण करते हैं । ( एवं वीइवयंति) प्राणातिपात आदि १८अठारह पापस्थानोंसे निवृत्त होने से जीव संसार को उल्लंघ जाते हैं-अर्थात् संसार से पार हो जाते हैं । (पसत्था चत्तारि, अप्पसत्था चत्तारि अब पूर्वोक्त विषय का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि हे गौतम ! गुरुत्व लघुत्व आदि आठ में से लघुस्व, परीतत्व, हस्वत्व और व्यतिव्रजन ये चार मोक्ष के कारण होने से प्रशंसनीय हैं। तथा गुरुत्व, आकुलीत्व, दीर्घत्व और पर्यटन ये चार संसार છે કે પ્રાણાતિપાત વગેરે અઢારે પાપનું સેવન કરવાથી જ જીવનો સંસાર ખૂબ જ स्थितिवाणी भने छ.(एवं हस्सी करे ति )तथा प्रातिपात योरे मढारे पापोथी નિવૃત્ત થવાથી જીવ પિતાના સંસારને અ૫કાલવાળે-ટૂંકા કાળને બનાવે છે. ( एवं अणुपरियति) मे २णे मेटले ससास्ने ४ सभी स्थिति વાળ બનાવી લીધા હોવાને કારણે એવા જી વારંવાર સંસારમાં પરિભ્રમણ ४ा ४२ छ. (एवं वीइवयंति ) प्रातिपात करे PA२ ५।५स्थानाथी निवृत्त થવાથી જીવ સંસારને ઓળંગી જાય છે, એટલે કે સંસારસાગરને તરી જાય छ, ( पसत्था चत्तारि, अपसत्था चत्तारि) व पूति विषयन। ५९२ ४२तi સૂત્રકાર કહે છે કે-હે ગૌતમ ! ગુરુત્વ, લઘુત્વ વગેરે આઠમાંથી લઘુત્વ, પરીતત્વ, હસ્તૃત્વ અને વ્યતિવજન, એ ચાર મેક્ષનાં કારણરૂપ હોવાથી પ્રશસ્ત છે. તથા ગુરુવ, આકુલત્વ (સંસાર વધાર) દીર્ઘવ અને પર્યટન, એ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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