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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ ३०९ सू० १ गुरुत्वादिस्वरूपनिरूपणम् २४९ वीर्यकार्यस्य गुरुत्वादेः प्रसङ्गेन गुरुत्वादीनां निरूपणार्थं नवमोद्देशकः प्रारभ्यते । तथा प्रथमशतकस्य प्रथमोदेशकस्यादौ संग्रहगाथायां गुरुए' इत्युक्तमिति गुरुत्वादेः प्रतिपादनाय नवमोद्देशकः प्रारभ्यते, तत्रेदमादिमसूत्रम् - 'कहणं' इत्यादि' मूलम् - कहणं भंते ! जीवा गुरुयत्तं हव्वमागच्छंति गोयमा ! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिण्णादाणेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं, कोहमाणमायालोभपेज्जदोसकलह अभक्खाणपेसुन्नपरपरिवाय- अरइरह-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति, कहणं भंते ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति, गोयमा ! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादंसण सल्लविरमणेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति, एवं संसारं आउली करेंति, एवं परितीक रेंति, एवं दीही करेंति, एवं हस्सी करेंति, एवं अणुपरियहंति, एवं वीइ वयंति, पसत्था चत्तारि, अप्पसत्था चत्तारि ॥ सू० १ ॥ अष्टम उद्देशक के अंत में वीर्य का विचार किया गया है, सो उस वीर्य से जीव गुरुत्व आदि को प्राप्त करते हैं । इस लिये वीर्य के कार्यभूत गुरुत्व आदि के प्रसङ्ग से गुरुत्वादि के निरूपण के निमित्त सूत्रकार ने इस नवमें उद्देशक का प्रारंभ किया है। तथा प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक की आदि में संग्रह गाथा में " गुरुए " ऐसा कहा गया है सो उस गुरुत्वादिक के प्रतिपादन के निमित्त नवमें उद्देशक का उन्हों ने प्रारंभ किया है। इस उद्देशक का सर्वप्रथम सूत्र " कहणं " इत्यादि है 6 कह णं भंते ! जीवा गुरुयतं हव्वमागच्छंति ' इत्यादि । · ८८ " આઠમા ઉદ્દેશકને અન્ને વીયના વિચાર કરવામાં આવ્યા છે. તે વી થી જીવ ગુરુત્વ વગેરે પ્રાપ્તિ કરે છે. તેથી વીના કાયભૂત ગુરુત્વ વગેરેનું નિરૂપણુ કરવાના અવસર પ્રાપ્ત થવાથી સૂત્રકાર આ નવમાં ઉદ્દેશકના પ્રારંભ કરે છે. તથા પ્રથમ શતકના પ્રથમ ઉદ્દેશકની શરૂઆતમાં સ‘ગ્રહગાથામાં પદ્મ આવે છે. તેથી ગુરુત્વાદિકનું પ્રતિપાદન કરવા માટે સૂત્રકારે નવમા ઉદ્દેશउनी शइयात कुरी छे. या उद्देशानुं सौथी पडेलुं सूत्र " कहणं " त्याहि छे. " कहर्ण भंते! जीवा गुरुयत्त हव्वमागच्छेति ” छत्यादि । गुरुए भ ३२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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