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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० ८ सू०८ विजयपराजयस्वरूपनिरूपणम् २२५ देन-'नो निधत्तानि, नो निकाचितानि' अनयोः संग्रहः, ' णो उदिण्णाई' नो उदोर्णानि, किन्तु ' उवसंताई भवंति ' उपशान्तानि कार्यकरणासमर्थानि भवंति, ‘से ' स खलु वीर्यवान् पुरुषः 'पराजिणइ ' पराजयते अपरं पराजितं करोति, एतादृशः पुरुषो युद्ध जेता भवतीत्यर्थः, 'जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माइं बद्धाई जाव उद्दिण्णाई णो उवसंताई भवंति ' यस्य पुरुषविशेषस्य खलु वीर्यवध्यानि कर्माणि बद्धानि स्पृष्टानि निधत्तानि निकाचितानि अभिसमन्वागतानि उदी.
नि उदयापलिकायां प्रविष्टानि किन्तु उपशान्तानि नो भवंति, ' से णं पुरिसे पराइज्जइ ' स खलु वीयरहितः पुरुषः पराजीयते आरेण पराजितो भवति । जो पुट्ठाई जाय णो अभिसमण्णागयाइं णो उदिण्णाई णो उवसंताई भवंति, से णं पराजिणइ) जिस जीव ने वीर्यवध्य-वीर्यरहित अर्थात् शत्रुदमनीय कर्मों को तद्रूप में नहीं बांधा है, नहीं स्पर्श किया है, यावत् नहीं प्राप्त किया है, उसके वे कर्म उदीर्ण नहीं हैं,किन्तु उपशांत हैं कार्य करने में असमर्थ हैं ऐसा पुरुष युद्ध में दूसरे को जीतता है यहां यावत् शब्द से निधत्त और निकाचित इन दों पदों का संग्रह हुआ है। इस से वीर्यवध्य कर्म उसके न निधत्त हैं और न निकाचित हैं ऐसा अर्थबोध होता है । ( जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई बद्धाइं जाव उद्दिण्णाई णो उवसंताई भवंति ) तथा जिस पुरूपके वीर्यवध्य कर्मबद्ध होते हैं-अर्थात् जिस पुरुष ने वीर्यरहित को को बांधा है, उन्हें स्पर्श किया है, वे उसके निधत्त है, निकाचित हैं, अभिसमन्वागत हैं, उदयावलिका में प्रविष्ट हैं किन्तु उपशान्त नहीं हैं (से पुरिसे पराइज्जइ) ऐसा वह पुरुष जाव णो अभिसमण्णागयाई णो उदिण्णाई णो उवसंताई भवंति से ण पराजिगड) गीतम ! २ वे वीर्य ध्य-पीडित मेटले शत्रुथी नाश थना भी मध्यां नथी, २५श्या नथी, यावत् प्रात ४ा नथी. तेन ते भ ઉદીર્ણ નથી, પણ ઉપશાન્ત છે-કાર્ય કરવાને અસમર્થ છે-એવો પુરુષ યુદ્ધમાં भी पुरुषने ते छ. २ " यावत्" ५४ १: नियत्त मन नियत, એ બે પદોનો પણ સમાવેશ થયે છે તેમ સમજવું. તેથી એ અર્થબોધ થાય છે કે તેનાં વીર્યવધ્ય કર્મ નિધત્ત પણ નથી અને નિકાચિત પણ નથી ( जरसणं वीरियवज्झाई कम्मा बछाई जाय उद्दिण्णाई णो उपसंताई' भवंति ) તથા જે પુરુષે વીર્યવધ્ય કર્મો બાંધ્યાં હોય છે એટલે કે જે પુરુષે વીર્યરહિત કર્મો બાંધ્યા છે, સ્પર્ધો છે, નિધત્ત અને નિકાચિત પણ કર્યા છે, અને જેનાં તે કર્મો અભિસમન્વાગત છે. અને ઉદયાવલિકામાં પ્રવેશી ચુક્યાં છે પણ ઉપभ २९
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨