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भगवतीसो समानत्वेपि कथमेकस्य जयः, अपरस्य च पराजयो भवति ? भगवानाह'गोयमे' त्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सवीरिए पराजिणाइ' सवीर्यः पराजयते अपरं पराजितं करोति 'अवीरिए पराइजइ' अवीयः पराजीयते, वीर्यरहितः पराजितो भवति । पुनः प्रश्नयति-' से केणटेणं जाव पराइज्जइ' तत्केनार्थेन यावत् पराजीयते ? हे भदन्त ! तत्र किं कारणं येनैकस्य जयः अपरस्य च पराजय इति भावः । भगवानाह-'गोयमे ' त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई णो बद्धाइं ' यस्य खलु वीर्यवध्यानि वीर्यवध्यं
शत्रुदमनीयं यत्र तानि-शत्रुदमनीयानि कर्माणि नो बद्धानि 'णो पुट्ठाई' नो स्पृष्टानि 'जाव णो अभिसमण्णागयाई' यावत् नो अभिसमन्वागतानि, यावत्पकहमेयं भंते !) तो हे भदन्त ! इसका क्या कारण है : प्रश्नकर्ता का अभिप्राय ऐसा है कि जब दोनों एकसी स्थिति आदि वाले हैं समान बल आदि वाले हैं तो फिर ऐसा क्यों होता है कि एक की जीत होती है और दूसरे की हार होती है ? ( गोयमा ! एवं सवीरिए पराजिणाइ. अवीरिए पराइज्जइ) हे गौतम ! यह बात इस प्रकार से है-कि जो वीर्यसहित होता है वह दूसरे को परास्त कर देतष् है और जो वीर्यरहित होता है वह परास्त हो जाता है । ( से केणटेणं जाव पराइज्जह ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हो कि जो वीर्यवाला होता है वह जीतता है और जो वीर्यविनाका होता है वह हारता है ? तात्पर्य यह है कि एक की जीत होती है और दूसरे की हार होती है इसमें क्या कारण है? (गोयमा ! जस्स णं वीरियवज्झाई, कम्माइं णो बद्धाई भगवे छ भने भान पुरुष ५२न्य पामे छे. (से कहमेयं भंते ! ) ता. ભગવન્! એવું શા કારણે બને છે? પ્રશ્ન કર્તાના પ્રશ્નને આશય એ છે કે બને સમાન બળ વાળા, સમાન ઉમર વાળા, સમાન સાધન સામગ્રીવાળા હોવા છતાં એવું કેમ બને છે કે એકની જીત અને બીજાની હાર થાય છે? (गोयमा! एवं सवीरिए पराजिणाइ, अवीरिए पराइज्जइ) 3 गीतम! तेनुं કારણ એ છે કે જે વીર્યયુક્ત હોય છે તે બીજાને હરાવી દે છે. અને જે वायडित डाय छ ते ५२न्य पामे छ (से केणठेण जाव पराइज्जइ) 3 ભગવન્! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે વીર્યવાળાને જય થાય છે અને વિયરહિત વ્યક્તિની હાર થાય છે? તાત્પર્ય એ છે કે એકનો જય અને બીજાને પરાજ્ય થવાનું કારણ શું છે? એ પ્રશ્ન છે તેને ઉત્તર નીચે પ્રમાણે છે.
उत्तर-( गोयमा ! जस्स वीरियबझाई, कम्माई णो बद्धाई णो पुट्ठाई
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨